
फ़ोरम स्टाफ़
इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र की आबादी ने लोकतांत्रिक मानदंडों को क्षेत्र के सांस्कृतिक ताने-बाने में पिरोया है – इन मानदंडों में कानून के शासन के तहत पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी शासन शामिल है। जापान ने 19वीं सदी के अंत में अपनी पहली प्रतिनिधि सरकार की स्थापना की, अपने आधुनिक संविधान से लगभग एक सदी पहले, हस्तक्षेप करने वाले सैन्य शासन को हटाकर, घोषणा की कि “संप्रभु शक्ति लोगों के साथ रहती है।” विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षाविदों और बढ़ते मध्यम वर्ग समेत दक्षिण कोरियाई नागरिक समाज ने स्वतंत्रता के लिए एक अभियान चलाया, जिसके बाद अंततः 1987 में प्रत्यक्ष राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया बहाल हुई। इसी तरह, ताइवान की जनता ने अधिनायकवाद से क्रमिक रूप से लोकतंत्र की ओर बढ़ने के लिए अधिक खुली राजनीतिक भागीदारी की मांग की। 1996 में इस मांग ने ज़ोर पकड़ लिया और द्वीप के नेताओं को जनता को जवाब देना पड़ा। इंडोनेशिया ने अधिनायकवादी शासन को खत्म करने के लिए संवैधानिक संशोधनों का इस्तेमाल किया और 1998 में, स्व-शासन की एक प्रणाली को औपचारिक रूप दिया जिसमें सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को महत्व दिया गया है। भारतीय लोकतंत्र उतना ही प्राचीन है जितनी ग्रीक प्रणाली। ग्रीक भाषा के शब्दों डेमो (लोक) और क्रेटोस (शासन) से डेमोक्रेसी यानी लोकतंत्र शब्द बना है। न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डेविड स्टासवेज (David Stasavage) ने 2020 की अपनी पुस्तक “द डिक्लाइन एंड राइज़ ऑफ़ डेमोक्रेसी: प्राचीन काल से आज तक का वैश्विक इतिहास” में लिखा है, वास्तव में, लोकतंत्र के शुरुआती रूप “दुनिया के सभी क्षेत्रों में इतने सामान्य थे कि हमें इसे मानव समाज में स्वाभाविक रूप से मौजूद स्थिति के रूप में देखना चाहिए।”
पूरे इंडो-पैसिफ़िक में नागरिक चुनावी लोकतंत्र का समर्थन करते हैं और मतदाता नेताओं को चुनते हैं, जो कानून बनाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किए गए 2023 के सर्वेक्षण में ऑस्ट्रेलिया, भारत, इंडोनेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया में कम से कम 74% प्रतिभागियों ने शासन के लिए ऐसी प्रणालियों को “अच्छा” या “बहुत अच्छा” बताया। पिछली प्यू रिपोर्टों के अनुसार, उनमें से अधिकांश देशों में अधिकतर लोग स्वतंत्र विपक्षी दलों को “बहुत महत्वपूर्ण” कहते हैं। इस अंतर के कारण वैध लोकतांत्रिक देश उत्तर कोरिया जैसे एकदलीय, निरंकुश शासन वाले देशों से अलग दिखाई देते हैं, जो चुनाव में सबकुछ पहले से तय होने के बावजूद लोकतांत्रिक होने का दावा करता है। इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट के सर्वेक्षणकर्ताओं के अनुसार, मलेशिया, मालदीव, मंगोलिया और तिमोर-लेस्ते में युवा लोग भी लोकतंत्र को सरकार का सबसे अच्छा रूप मानते हैं।
पूरे क्षेत्र में, लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को महत्व देते हैं। हांगकांग, दक्षिण कोरिया और ताइवान में लगभग 10 में से 8 वयस्कों ने 2023 में प्यू सर्वेक्षणकर्ताओं के दौरान कहा कि जो अपनी लोग सरकार के कार्यों से असहमत हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से असहमति व्यक्त करनी चाहिए। एक गैर लाभकारी संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने जून 2024 में कहा कि ये निष्कर्ष हांगकांग में विशेष रूप से सार्थक हैं, जहाँ पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (पीआरसी) ने “दो कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों को लागू करके हांगकांग में नागरिक स्वतंत्रता को खत्म कर दिया और निर्वाचित प्रतिनिधियों को हिरासत में लेकर उन पर मुक़दमा चलाकर, नागरिक समाज समूहों व स्वतंत्र श्रमिक संघों को खत्म करके, लोकतंत्र समर्थक मीडिया को दबाकर और दूसरे कदम उठाकर लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचल दिया।”

लोकतंत्र के प्रति क्षेत्र के लोगों का उत्साह व्यावहारिक रूप में दिखाई देता है। आय के स्तर पर दक्षिण कोरिया और ताइवान के साथ पीआरसी की तुलना एक उदाहरण प्रस्तुत करती है। पिछली आधी सदी में तीनों को बड़े आर्थिक लाभ हुए हैं। विशेष रूप से, बीजिंग की अर्थव्यवस्था में कई बार वार्षिक वृद्धि दर दहाई अंकों में रही, हालांकि 2012 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के महासचिव शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद से सरकार पर नियंत्रण बढ़ने से विकास धीमा हो गया। हालांकि, अमेरिका में स्थित थिंक टैंक अटलांटिक काउंसिल के शोधकर्ताओं का कहना है कि सीसीपी ने चीनी लोगों को सीमित समृद्धि प्रदान की है। नीति विशेषज्ञ ब्रैड लिप्स (Brad Lips), क्रिस मौरेन (Kris Mauren) और डैन नेग्रिया (Dan Negrea) ने अपने अटलांटिक काउंसिल लेख “द कंटिन्युइंग डिबेट अबाउट फ़्रीडम एंड प्रॉस्पेरिटी” में लिखा है, “अधिनायकवादी व्यवस्था ने बिल्कुल अपने इरादे के मुताबिक़ काम करते हुए अभिजात वर्ग के एक छोटे समूह को बड़ी मात्रा में धन मुहैया कराया है, जबकि यह व्यवस्था बड़े पैमाने पर समाज में समृद्धि लाने में विफल रही है।”
पीआरसी की सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) 2023 में प्रति व्यक्ति लगभग 13,400 डॉलर के आसपास थी और विश्व बैंक ने इसे “उच्च-मध्यम आय” वाले देश का दर्जा दिया। ताइवान और दक्षिण कोरिया में, प्रति व्यक्ति जीएनआई पीआरसी की तुलना में दोगुने से भी अधिक थी। हालाँकि, पचास साल पहले, तीनों में प्रति व्यक्ति आय समान रूप से कम दर्ज की गई थी। इन तीनों में अधिनायकवाद था, हालांकि सियोल और ताइपे में सैन्य तानाशाही के बावजूद नागरिकों के पास आर्थिक स्वतंत्रता थी, जो चीन के नागरिकों के पास नहीं थी। लिप्स, मौरेन और नेग्रिया ने लिखा, “मुक्त बाज़ार व्यवस्था बरक़रार रखने वाले सियोल और ताइपे ने 1990 के दशक की शुरुआत में लोकतंत्र को भी चुना और इन देशों में [आय] पीआरसी की तुलना में बहुत तेज़ी से बढ़ी।” “1990 के दशक की शुरुआत तक, दक्षिण कोरिया और ताइवान ‘मध्यम-आय के जाल’ से बच गए थे: उन्होंने मध्य-आय और उच्च-आय वाले देशों के बीच निर्धारित विश्व बैंक की सीमा को पार कर लिया था।
उन्होंने लिखा, “क्या एक अधिनायकवादी शासन में आर्थिक विकास के लिए आवश्यक नवाचार और उद्यमशीलता फल-फूल सकते हैं? प्रगतिशील अर्थव्यवस्था और लंबे समय तक अधिनायकवादी शासन वाले देशों के बहुत कम उदाहरण हैं। …इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि प्रभावी मूल्यांकन और संतुलन के बिना किसी प्रणाली के माध्यम से अच्छे नेता सामने आते रहेंगे। लोकतंत्र तमाम ख़ामियों के बावजूद एक ऐसी व्यवस्था साबित हुआ है, जो अच्छे नेताओं को सामने लाने और बुरे नेताओं को हटाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है, और इस तरह यह टिकाऊ समृद्धि की ओर ले जाता है।”
स्वीकृत मानदंडों पर दबाव डालना
पूरे इंडो-पैसिफ़िक में लोकतंत्र के सामने मौजूद ख़तरों में सैन्य और आर्थिक नियंत्रण, सूचना तंत्र में हेरफेर, चुनाव में हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार शामिल हैं। जो राष्ट्र खाद्य और आर्थिक सुरक्षा के लिए दक्षिण चीन सागर पर निर्भर हैं, वे पीआरसी की अवैध, जबरन, आक्रामक और भ्रामक रणनीति से परिचित हैं। शी के नेतृत्व में, राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय कानून को फिर से लिखने के अपने ठोस प्रयास के तहत समुद्री क्षेत्र में शत्रुता बढ़ा दी है। दूसरे शब्दों में, पीआरसी सभी पर निष्पक्ष रूप से क़ानून लागू करने के लोकतांत्रिक मानदंड यानी क़ानून के शासन को “क़ानून द्वारा शासन” की प्रणाली से बदलने का प्रयास करता है, जिसकी वजह से नेताओं को मनमाने ढंग से क़ानून बनाने और लागू करने का मौक़ा मिलता है।

द एसोसिएटेड प्रेस
पीआरसी ने आसपास के देशों के अधिकारों की अनदेखी करते हुए, लंबे समय से दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर अपना दावा जताया है; इन देशों को ये अधिकार देने वाले संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन और अतंरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण के 2016 के फ़ैसले के अनुसार पीआरसी के दावे अवैध हैं।
चूंकि इसके तटरक्षक बल मनीला के विशेष आर्थिक क्षेत्र में फिलीपीन के मछली पकड़ने वाले दल और सैन्य अभियानों में बार-बार बाधा डालते हैं, इसलिए शी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत उन मानदंडों को एकतरफा रूप से बदलना चाहते हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र में दशकों से शांति और स्थिरता बनाए रखने में मदद की है। पीआरसी की ज़ोर-ज़बरदस्ती ताइवान जलडमरूमध्य और उसके आसपास भी दिखाई दे रही है। ताइवान जलडमरूमध्य विश्व स्तर पर एक और महत्वपूर्ण जलमार्ग है, जहाँ शी ने सैन्य अभ्यास, ताइवान के नियंत्रण वाले जलक्षेत्र में घुसपैठ और तेजी से मध्य रेखा को पार करने वाले विमानों के माध्यम से यथास्थिति को तहस-नहस करने की धमकी दे रहे हैं। यह सीमा एक समय लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान और बीजिंग के बीच तनाव को कम करने के लिए एक तंत्र के रूप में कार्य करती थी। चीन ताइवान पर अपना दावा जताता है और बलपूर्वक उस पर कब्ज़ा करने की धमकी देता है। इसके अलावा, सीसीपी के तट रक्षक और समुद्री मिलिशिया ने इंडोनेशियाई, मलेशियाई और वियतनामी जहाज़ों को परेशान किया है और तेल व गैस आपूर्ति में बाधा डाली है। विश्लेषकों का तर्क है कि आक्रामकता का उल्टा असर हुआ है और इस रणनीति से पीआरसी विरोधी भावनाएँ पैदा हुई हैं। ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय में यूनाइटेड स्टेट्स स्टडीज़ सेंटर के माइकल ग्रीन (Michael Green) और डैनियल ट्विनिंग (Daniel Twining) ने लिखा कि यहाँ तक कि क्षेत्र के एक-पक्षीय देशों का भी कहना है “अब भी एक स्वतंत्र और मुक्त इंडो-पैसिफ़िक का समर्थन करते हैं, न कि चीन के विस्तारवादी अधिनायकवादी शासन की इच्छानुसार बनने वाली व्यवस्था का, जिसमें विस्तारवाद को बढ़ावा दिया जाए और बड़े देश अपने पड़ोसी देशों की स्वतंत्रता के प्रति हठधर्मिता दिखाने के लिए स्वतंत्र हों।”
पीआरसी का आर्थिक प्रभाव दक्षिण चीन सागर से आगे तक फैला हुआ है। बीजिंग के सामने खड़े होने के बाद ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत, जापान और दक्षिण कोरिया को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ा है। दर्जनों उदाहरण हैं कि पीआरसी:
कई ऑस्ट्रेलियाई उत्पादों पर कड़े टैरिफ़ लगाए गए क्योंकि कैनबरा ने कोविड-19 की उत्पत्ति की अंतरराष्ट्रीय जाँच का अनुरोध किया था।
जापान के नियंत्रण वाले जल क्षेत्र में मछली पकड़ने वाले एक चीनी जहाज़ के कैप्टन की गिरफ्तारी के बाद पृथ्वी पर मौजूद दुर्लभ खनिजों के निर्यात को अवरुद्ध कर दिया गया है और पर्यटन के लिए जापान की यात्रा करने पर रोक लगा दी गई।
जब सियोल ने कहा कि वह उत्तर कोरियाई खतरों से बचने के लिए मिसाइल रक्षा प्रणाली स्थापित करेगा, तो दक्षिण कोरियाई कार निर्माताओं का बहिष्कार किया गया और अन्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
ग्रीन और ट्विनिंग ने लिखा, “इस तरह के आर्थिक नियंत्रण के माध्यम से निर्वाचित नेताओं को उनके देश के नागरिकों के हितों की तुलना में चीनी हितों को अधिक तवज्जो देने के लिए मजबूर करने का प्रयास करके लोकतंत्र और राष्ट्रीय संप्रभुता को तहस-नहस कर दिया जाता है।”
सीसीपी का लक्ष्य रूस के साथ मिलकर दुनियाभर में लोगों को प्रभावित करने का अभियान चलाना है, जिसके तहत एकाधिक दावों से लेकर ताइवान की आत्मरक्षा की गुणवत्ता जैसे विषयों के बारे में झूठी बातें फैलाई जाती हैं। मानवाधिकार समूहों, नीति विशेषज्ञों, इंटरनेट स्वतंत्रता के समर्थकों और सीसीपी के लीक हुए दास्तावेज़ों के अनुसार अधिनायकवादी देश दूसरे देशों के स्वतंत्र और मुक्त इंटरनेट प्लेटफ़ॉर्मों का लाभ उठाते हैं जबकि उनके ख़ुद के यहाँ लोगों के लिए उपलब्ध नेटवर्क की अत्यधिक निगरानी की जाती है। अधिनायकवादी देश स्वतंत्र देशों में लोगों के बीच कलह पैदा करने, अलोकतांत्रिक विचारों को बढ़ावा देने और विदेश में अपने ही नागरिकों को परेशान करने के लिए दूसरे देशों के इंटरनेट प्लेटफ़ॉर्मों का इस्तेमाल करते हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने आगाह किया है कि दुर्भावनापूर्ण तरीक़े से काम करने वाले तत्व डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों पर झूठी या हेरफेर की गई ख़बरों, तस्वीरों और अन्य कंटेंट फैलाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीक का उपयोग करते हैं और इसकी वजह से सही जानकारी को झूठी सूचना से अलग करना मुश्किल होता है।
दक्षिण कोरिया के तत्कालीन राष्ट्रपति यून सुक येओल ने अपने देश के 2024 लोकतंत्र शिखर सम्मेलन के दौरान कहा, “हमें अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए एकजुटता दिखाने के अलावा प्रौद्योगिकी साझा करने की भी आवश्यकता है।” निक्केई एशिया समाचार पत्रिका के अनुसार उन्होंने आगे कहा, “हमें एआई और डिजिटल सिस्टम बनाने की ज़रूरत है जो फ़र्जी ख़बरे बनाने और ग़लत सूचना फैलाने के लिए एआई और डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करने वालों का पता लगाकर उनका मुक़ाबला कर सके।”
‘द चाइना मॉडल’
इस बीच, बीजिंग की अंतरराष्ट्रीय “अभिजात वर्ग पर नियंत्रण” हासिल करने का तरीक़ा निष्पक्ष चुनाव, सरकारी पारदर्शिता और एक स्वतंत्र नागरिक समाज जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमज़ोर बनाता है। ऑस्ट्रेलिया के स्विनबर्न प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर जॉन फ़िट्ज़गेराल्ड (John Fitzgerald) ने अमेरिका में स्थित अनुसंधान केंद्र इंटरनेशनल फ़ोरम फ़ॉर डेमोक्रेटिक स्टडीज़ के 2023 पॉडकास्ट में कहा, “ऐसे देश हैं, जहाँ की सरकारें चीन की चुनौती का सामना करने के मामले में नई हैं, ऐसे में वे चीन के साथ व्यापार और निवेश के अवसरों को देखकर चकित हैं। यह याद रखना हमेशा महत्वपूर्ण है कि ये व्यापार और निवेश आकर्षण वास्तव में स्थानीय शासक परिवारों और शासक अभिजात वर्ग को लुभाने के लिए हैं।” फ़िट्ज़गेराल्ड ने कहा: उन नेताओं को पीआरसी का संदेश है “यदि आप चीन मॉडल का अनुसरण करना चाहते हैं… तो आपको वही करना होगा जो हम करते हैं। हम नागरिक समाज को कुचलते हैं।”

एजेंस फ़्रांस-प्रेस समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, सोलोमन द्वीप में, पीआरसी ने राजनेताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले विकास निधि में लाखों डॉलर का भुगतान किया है। आलोचकों का सुझाव है कि “निर्वाचन क्षेत्र विकास” निधि एक ऐसी निधि है जिसका उपयोग प्रमुख राजनेताओं को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। सोलोमन द्वीप ने 2022 में बीजिंग के साथ एक गुप्त सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद अपने 2023 के चुनाव में भी देरी की, जिससे यह आशंका पैदा हो गई कि सीसीपी साउथ पैसिफ़िक में नौसेना के जहाज़ों को आधार बनाएगी।
पीआरसी की कुख्यात गैर-पारदर्शी ‘वन बेल्ट, वन रोड’ बुनियादी ढांचा विकास योजना समेत इस तरह के निवेश और “सहायता” समझौतों की शर्तें अक्सर मतदाताओं और करदाताओं से छिपाई जाती हैं, जिससे अभिजात वर्ग को जवाबदेही और सूचना की स्वतंत्रता जैसे लोकतांत्रिक मानदंडों को दरकिनार करने का अवसर मिलता है। मलाइता द्वीप में प्रांतीय विधानसभा के लिए 2024 में फिर से चुने गए एक प्रमुख पीआरसी आलोचक डैनियल सुइदानी (Daniel Suidani) ने एजेंस फ़्रांस-प्रेस से कहा कि सीसीपी के निवेश ने सोलोमन द्वीप के लोकतंत्र को नष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा, ”अंतररा्ष्ट्रीय समुदाय से, मैं कहना चाहूँगा कि हमें आपके समर्थन की ज़रूरत है। हम वही स्वतंत्रता चाहते हैं जो बाकी सभी लोगों को मिलती है।”
अधिनायकवादियों को प्रतिक्रिया देना
इंडो-पैसिफ़िक में सहयोगी और साझेदार आर्थिक सहायता, सुरक्षा सहायता और पारदर्शी व जवाबदेह शासन को मज़बूत बनाकर अधिनायकवादी दबाव का मुक़ाबला करते हैं। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव उसकी अंतरराष्ट्रीय विकास नीति में एक प्राथमिकता है। ऑस्ट्रेलिया के चुनाव आयोग ने एक स्वतंत्र चुनाव आयोग के गठन के लिए तिमोर-लेस्ते के साथ काम किया, एक नई चुनावी प्रणाली स्थापित करने में टोंगा की सहायता की, नेपाल की चुनावी शिक्षा व सूचना केंद्र खोलने में मदद की, और 1998 से पापुआ न्यू गिनी को सहायता प्रदान करता रहा है। कैनबरा के फ़िजी, सोलोमन द्वीप, श्रीलंका और टोंगा में भी चुनावी सहायता कार्यक्रम हैं।
जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री फ़ुमियो किशिदा (Fumio Kishida) ने 2022 में यूक्रेन पर रूस के अकारण आक्रमण करने के बाद कहा था कि “आज यूक्रेन, कल ताइवान हो सकता है” और दुनिया भर में लोकतंत्र की रक्षा की जानी चाहिए। तोक्यो ने विदेशी विकास सहायता को मानवाधिकारों, स्वतंत्रता और क़ानून के शासन के समर्थन से जोड़ा और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना। 2018 से, जापान ने फ़िजी, किरिबाती, माइक्रोनेशिया, पलाऊ, सोलोमन द्वीप और वानुअतु में विधायिकाओं को मज़बूत बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ काम किया है। परियोजना के नवीनतम चार-वर्षीय और 60 लाख (6 मिलियन) डॉलर वाले चरण के तहत तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण दिया जाता है और क्षमता निर्माण किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के पैसिफ़िक कार्यालय के डॉन डेल रियो (Dawn Del Rio) ने कहा, “विधानमंडल यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि नागरिकों की आवाज़ सुनी जाए, सार्वजनिक संसाधनों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके़ से आवंटित किया जाए और नीतियाँ लोगों की ज़रूरतों के अनुरूप हों। हमें इस महत्वपूर्ण पहल के लिए जापान के साथ साझेदारी करने पर गर्व है।”

दक्षिण कोरिया ने वैश्विक लोकतंत्र की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए हाल ही में अंतरराष्ट्रीय डिजिटल परिवर्तनों को विकसित करने, प्रौद्योगिकी क्षमता को बढ़ावा देने और भ्रष्टाचार रोधी प्रयासों के लिए 10 करोड़
(100 मिलियन) डॉलर खर्च करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। यून ने कहा कि लोकतंत्र अपनाने के लिए दक्षिण कोरिया को मिले बहुराष्ट्रीय समर्थन के बदले यह धनराशि दी जा रही है। कोरिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नेम क्यू किम (Nam Kyu Kim) ने ईस्ट एशिया इंस्टीट्यूट के लिए लिखा है कि देश के भ्रष्टाचार रोधी और नागरिक अधिकार आयोग ने भी संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग किया है और वियतनाम, कोसोवो तथा उज़्बेकिस्तान समेत विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार-रोकथाम संस्थान स्थापित करने में मदद की है।
अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए अमेरिकी एजेंसी इंडो-पैसिफ़िक के लगभग हर देश में निष्पक्ष, पारदर्शी शासन को बढ़ावा देती है, जिसमें मालदीव में न्यायिक सुधार का समर्थन, इंडोनेशिया में स्वतंत्र मीडिया को बढ़ावा, तिमोर-लेस्ते में मतदान को बढ़ावा देने और एक समावेशी, शांतिपूर्ण व सहभागी लोकतंत्र प्रदान करने के लिए फिजी के साथ साझेदारी करना शामिल है।
क्षेत्र में अन्य लोकतंत्र समर्थक प्रयासों में एशिया और मध्य पूर्व के नागरिक और राजनीतिक नेताओं को प्रशिक्षित करने के लिए इंडोनेशिया का बाली डेमोक्रेसी फ़ोरम और ताइवान का फ़ाउंडेशन फ़ॉर डेमोक्रेसी शामिल है, जो नागरिक समाज समूहों का समर्थन करता है। ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका की साझेदारी वाले क्वाड जैसे बहुपक्षीय समूह भी सामान्य मूल्यों को बनाए रखने और निरंकुशता का विरोध करने के लिए एकजुट हैं।
पूरे क्षेत्र के विद्वानों, विचारकों और नागरिक समाज के हितधारकों के एक बहुराष्ट्रीय समूह, सनीलैंड्स इनिशिएटिव के सदस्यों ने सियोल में 2024 की शुरुआत में एक सभा के बाद कहा कि इंडो-पैसिफ़िक में लोकतंत्र को महत्वपूर्ण चुनौतियों और प्रमुख अवसरों का सामना करना पड़ता है। हांगकांग, म्यांमार, उत्तर कोरिया और अन्य जगहों पर भले ही स्वतंत्रता और मानवाधिकारों में गिरावट जारी है, लेकिन ब्लू पैसिफ़िक से उत्तर पूर्वी एशिया तक के चुनाव में विविध विचारों, नागरिक भागीदारी में वृद्धि और स्थापित व उभरती लोकतांत्रिक प्रणालियों के बीच सूचना साझा करने का एक अवसर है। सनीलैंड के ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, समोआ, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और अमेरिका के प्रतिभागियों ने लोकतांत्रिक साझेदारी विकसित करने, सरकारी पारदर्शिता को बढ़ावा देने और तकनीकी अवसरों व ख़तरों की पहचान करने की प्रतिबद्धता जताई है। समूह ने कहा, “मौजूदा स्थानों पर अपने प्रयासों को केंद्रित करके और नए लोकतांत्रिक अवसरों के लिए हमेशा सतर्क रहकर, हम एक स्वतंत्र व मुक्त इंडो-पैसिफ़िक को वास्तविकता बनाने के लिए काम कर सकते हैं।”
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