आर्कटिक आक्रामकता
रूस द्वारा यूक्रेन पर फ़ोकस के चलते PRC का ध्रुवीय मार्ग पर अनुगमन
फ़ोरम स्टाफ़
पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) आर्कटिक राष्ट्र नहीं है। इसकी उत्तरी सीमा आर्कटिक सर्कल से लगभग 1,500 किलोमीटर दूर है तथा आर्कटिक महासागर से और भी दूर है। फिर भी PRC इस बर्फ़ीले क्षेत्र पर अतिक्रमण कर इसके विशाल संसाधनों पर नियंत्रण कर रहा है तथा आर्थिक व संभावित सैन्य प्रयोजनों के लिए उसकी सामरिक स्थिति का दोहन कर रहा है।
PRC ने 2018 में मनमाने ढंग से ख़ुद को “आर्कटिक-निकट” राज्य घोषित कर दिया था। इस लेबल की तुरन्त ही व्यापक आलोचना हुई। “केवल आर्कटिक राज्यों और ग़ैर-आर्कटिक राज्यों की मौजूदगी है,” तत्कालीन संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ (Mike Pompeo) ने कहा था। “कोई तीसरी श्रेणी मौजूद नहीं है, और इसके विपरीत दावा करके चीन को कुछ भी पाने का अधिकार नहीं है।”
आर्कटिक क्षेत्र को आठ राष्ट्र घेरे हुए हैं — कनाडा, डेनमार्क, फ़िनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका — और ये सभी आर्कटिक सर्कल के भीतर के भूभाग और प्रादेशिक जल पर अपना दावा करते हैं।
अपनी दूरी के बावजूद, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के महासचिव शी जिनपिंग के नेतृत्व में बीजिंग ने व्यापक आर्कटिक अनुसंधान किया है, इस क्षेत्र के प्रचुर संसाधनों — जिसमें तेल, गैस, खनिज और मछली शामिल हैं — पर कब्जा किया है और उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) की क्षमता का बखान किया है, जो एशिया और यूरोप के शीर्ष पर बहु-पथ मार्ग है। NSR, जब बर्फ़ से मुक्त होता है, तो वाणिज्यिक और संभावित सैन्य जहाज़ों के लिए एक वैकल्पिक, छोटा पूर्व-पश्चिम समुद्री गलियारा प्रदान करता है।
लंडन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में अंतरराष्ट्रीय इतिहास की प्रोफ़ेसर डॉ. क्रिस्टीना स्पोर (Kristina Spohr) ने दिसंबर 2023 में द डिप्लोमैट पत्रिका को बताया कि बीजिंग NSR को चीन की वन बेल्ट, वन रोड (OBOR) आधारभूत संरचना निवेश योजना का विस्तार बताता है।
विभिन्न कारकों ने PRC को इस क्षेत्र में पैर जमाने में सक्षम बनाया है:
• जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री बर्फ़ पिघल रही है। वॉयस ऑफ़ अमेरिका समाचार संगठन ने नवंबर 2023 में बताया कि आर्कटिक का तापमान वैश्विक औसत से चार गुना अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसे ध्रुवीय प्रवर्धन कहा जाता है।
• उन्नत प्रौद्योगिकी जैसे बर्फ़ तोड़ने वाले जहाज़, सभी मौसम में काम करने वाली हवाई पट्टियाँ, तैरते परमाणु ऊर्जा संयंत्र, सुदूर संवेदन उपकरण और ड्रोन।
• आर्कटिक क्षेत्र के विशालकाय देश रूस को यूक्रेन के विरुद्ध अकारण युद्ध के कारण सैन्य और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। आर्कटिक तटरेखा के 53% हिस्से के साथ, रूस ने क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे को बनाए रखने और विकसित करने में चीनी निवेश को स्वीकार किया है, जबकि मास्को अपने युद्ध को आगे बढ़ा रहा है, जैसा कि टैम्पा के दक्षिण फ़्लोरिडा विश्वविद्यालय में वैश्विक और राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थान (GNSI) ने दिसंबर 2023 में रिपोर्ट किया था।
कनाडा के वैंकूवर स्थित आर्कटिक संस्थान के अनुसंधान सहयोगी ट्रिम ईटरजॉर्ड (Trym Eiterjord) ने फ़ोरम को बताया कि मार्च 2021 में अपनाई गई PRC की 14वीं पंचवर्षीय योजना में आर्कटिक क्षेत्र के लिए राष्ट्र के उद्देश्यों को रेखांकित किया गया है। इस योजना से क्षेत्र में घुसपैठ करने की बीजिंग की साज़िश का पहला स्पष्ट संकेत मिला। PRC ने ज़मीन, समुद्र और अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके आर्कटिक के बारे में अपनी उन्नत खुफ़िया जानकारी को एकत्रित किया।
PRC ने अपने बढ़ते ज्ञान का उपयोग आर्कटिक देशों को प्रभावित करने के प्रयासों में किया है। शुरुआत में, जब दूरस्थ देश ने काफ़ी दिलचस्पी दिखाई तो कुछ लोग इसके लिए तैयार हो गए। लेकिन इस क्षेत्र के लिए बीजिंग की मंशा पर सवाल बढ़ते जा रहे हैं। “लोग सोचने लगे कि आर्कटिक में चीन की अधिक उपस्थिति का क्या मतलब है,” ईटरजॉर्ड ने कहा। “अब संदेह अधिक है।”
उसकी कुछ गतिविधियाँ खुलासा करने वाली हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, चीनी और रूसी नौसेना बलों ने अगस्त 2023 में अलास्का के अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में सैन्य अभ्यास किया। इससे पहले, सुरक्षा चिंताओं ने कड़े नियमों की माँग को बढ़ावा दिया था, जब ऐसी रिपोर्टें आईं कि चीनी शोधकर्ताओं के — जो डेनमार्क और स्वीडन के शोधकर्ताओं के साथ काम कर रहे थे — चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के साथ अघोषित संबंध थे, जैसा कि द डिप्लोमैट ने जून 2022 में बताया था।
नाटो की सैन्य समिति के अध्यक्ष रॉयल नीदरलैंड्स नेवी एडमिरल रॉब बाउर (Rob Bauer) ने अक्तूबर 2023 में आइसलैंड के रेक्जाविक में वार्षिक आर्कटिक सर्कल असेंबली में कहा, “इस क्षेत्र के लिए चीन के इरादे अस्पष्ट बने हुए हैं।” उस महीने के अंत में उन्होंने ब्लूमबर्ग न्यूज़ को बताया: “उन्होंने यह नहीं कहा है कि वे सैन्य रूप से वहाँ नहीं जाएँगे।”
समुद्री बर्फ़ के पिघलने से आर्कटिक क्षेत्र व्यापार और संसाधनों के दोहन के लिए खुल रहा है। इससे क्षेत्र का भू-रणनीतिक महत्व बढ़ रहा है, जो एक दशक पहले तक उसकी लगभग उपेक्षित स्थिति से काफ़ी अलग है।
ऐतिहासिक रूप से, जहाज़ों को NSR में नौकायन के लिए आइसब्रेकर एस्कॉर्ट्स की आवश्यकता होती है। पिघलती बर्फ़ की परत इसमें बदलाव ला रही है, जिससे व्यापार के लिए संभावित शॉर्टकट रास्ता खुल रहा है, जिसकी वजह से भीड़भाड़ वाले समुद्री मार्गों और बाब अल-मंडेब और मलक्का जलडमरूमध्य तथा स्वेज नहर जैसे अवरोध बिंदुओं से बचा जा सकता है।
2010 में डेनिश व्यापारी जहाज़ नॉर्डिक बैरेंट्स NSR को पार करने वाला पहला ग़ैर-रूसी थोक वाहक था। इसके बाद और भी वाणिज्यिक जहाज़ आए। नॉर्वे के हाई नॉर्थ न्यूज़ अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी तेल के लिए चीनी माँग — जिसे बीजिंग को छूट पर बेचा गया क्योंकि मास्को ने यूक्रेन पर फरवरी 2022 के आक्रमण के बाद लगाए गए अंतरराष्ट्रीय तेल प्रतिबंधों को दरकिनार करने की कोशिश की — जिसके परिणामस्वरूप 2023 में NSR पर रिकॉर्ड 75 पारगमन हुए। अख़बार के अनुसार, 2023 में NSR पर कुल 21 लाख (2.1 मिलियन) टन कार्गो की आवाजाही होगी, जो 2021 के पिछले उच्चतम स्तर को पार कर जाएगी।
यू.एस. नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के वैज्ञानिक वॉल्ट मीयर (Walt Meier) ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि आर्कटिक एक “मौलिक बदलाव” से गुज़र रहा है। कुछ मॉडलों का अनुमान है कि सदी के मध्य तक या उससे भी पहले आर्कटिक महासागर की ग्रीष्म ऋतु बर्फ़ रहित हो जाएगी।
पर्यावरणविदों और अधिकारियों को चिंता है कि पिघलती बर्फ़ का लाभ उठाने की जल्दबाजी से आपदा आ सकती है। दरअसल, फ़ाइनेंशियल टाइम्स समाचार सेवा की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन संबंधी प्रतिबंधों के दबाव में रूस ने सितंबर 2023 में दो ग़ैर-प्रबलित तेल टैंकरों को NSR से चीन तक जाने की अनुमति दे दी है।
पर्यावरण समूह ग्रीनपीस ने आर्कटिक महासागर — ग्रह के सबसे कम संरक्षित महासागर — में अभयारण्यों के नेटवर्क के हिस्से के रूप में गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए वैश्विक महासागर संधि का आह्वान किया है।
आर्कटिक शासन
आर्कटिक परिषद में आर्कटिक सर्कल के अंदर स्थित आठ राष्ट्र शामिल हैं। रूस को छोड़कर सभी देश नाटो के सदस्य हैं। इसमें चीन सहित 13 ग़ैर-आर्कटिक पर्यवेक्षक राज्य, 13 अंतर-सरकारी और 12 ग़ैर-सरकारी संगठन शामिल हैं। पर्यवेक्षक आमंत्रित किए जाने पर बैठकों और कार्य समूहों में भाग लेते हैं, लेकिन उनके पास निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होता।
1996 में ओटावा घोषणा-पत्र द्वारा स्थापित यह परिषद सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर देते हुए आर्कटिक राज्यों और स्वदेशी समुदायों के बीच सहयोग, समन्वय और अंतःक्रिया को बढ़ावा देती है। परिषद के पास कोई क्षेत्राधिकार नहीं है। विनियामक जिम्मेदारी व्यक्तिगत आर्कटिक राष्ट्रों और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय निकायों पर है।
GNSI ने बताया कि नियमित NSR पारगमन की संभावना — जिसमें समय और शिपिंग लागत में महत्वपूर्ण बचत की प्रत्याशा है — और व्यापक संसाधनों तक पहुँच इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय दिलचस्पी को आकर्षित कर रही है। शोध संस्थान ने कहा कि आर्कटिक में विश्व के 13% तेल भंडार, 30% प्राकृतिक गैस तथा एल्युमीनियम, तांबा, सोना, ग्रेफ़ाइट, जिप्सम, लोहा, निकल, प्लैटिनम, चाँदी, टिन और यूरेनियम जैसे खनिज भंडार मौजूद हैं। स्मार्टफ़ोन, लैपटॉप और इलेक्ट्रिक वाहनों के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा और सैन्य प्रौद्योगिकी के निर्माण के लिए भी दुर्लभ-मृदा तत्वों की आवश्यकता होती है।
सेंटर फ़ॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (CSIS) थिंक टैंक ने अप्रैल 2023 में रिपोर्ट दी थी कि शी दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों और नागरिक-सैन्य संलयन पर ज़ोर देते हैं, इसलिए आर्कटिक में चीनी प्रगति के सैन्य प्रयोजन भी हो सकते हैं। जहाँ CCP आर्कटिक में सैन्य दिलचस्पी से इनकार करती है, वहीं नाटो नेता इसे एक संभावित ख़तरा मानते हैं। CCP ने ऐसा न करने का वादा करने के बाद अन्यत्र सैन्यीकरण किया है — उदाहरण के लिए, दक्षिणी चीन सागर में कृत्रिम द्वीप-समूह। 32 सदस्यीय सुरक्षा गठबंधन और अलग-अलग आर्कटिक देश इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए, यू.एस. मरीन्स ने मार्च 2024 में आर्कटिक एज अभ्यास के दौरान शीत-मौसम रणनीति का अभ्यास किया।
CSIS की रिपोर्ट के अनुसार आर्कटिक में अनुसंधान केंद्र स्थापित करने के PRC के प्रयासों को राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से डेनमार्क, फ़िनलैंड, ग्रीनलैंड और स्वीडन से प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है, तथा अमेरिका ने अन्य आर्कटिक देशों को सतर्क रहने के लिए आगाह किया है।
“ख़तरे को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जाना चाहिए,” रैंड कॉर्प की राजनीतिक वैज्ञानिक और आर्कटिक सुरक्षा विशेषज्ञ स्टेफ़नी पेज़ार्ड (Stephanie Pezard) ने दिसंबर 2022 में अमेरिका-स्थित शोध समूह द्वारा प्रकाशित एक लेख में कहा। “लेकिन साथ ही, उनका [PRC] स्पष्ट इरादा है कि आर्कटिक विकास से उन्हें बाहर नहीं रखा जाए, क्योंकि यह क्षेत्र अधिक सुलभ हो रहा है।”
रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने से कुछ दिन पहले घोषित की गई चीन की रूस के साथ “बिना किसी सीमा” वाली मित्रता ने आर्कटिक परिषद के भीतर विभाजन पैदा कर दिया। परिषद के सात नाटो सदस्यों में से कुछ ने PRC और उसके आर्कटिक प्रॉक्सी रूस के उद्देश्यों पर सवाल उठाया। CSIS ने बताया, “चीन के पास बहुत कम विकल्प बचे हैं, इसलिए वह रूस में अपने निवेश को बढ़ा रहा है, क्योंकि वह आर्कटिक में मास्को को अपने पसंदीदा रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहा है।”
‘सुविधा के आधार पर’
सतही तौर पर, बीजिंग और मॉस्को के बीच आर्कटिक साझेदारी पारस्परिक रूप से लाभकारी प्रतीत होती है। यूक्रेन के खिलाफ़ अपने लंबे और महँगे युद्ध में व्यस्त रूस, तेल ख़रीदने, वैज्ञानिक अनुसंधान करने, बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने और NSR को व्यवहार्य शिपिंग मार्ग के रूप में बढ़ावा देने के लिए PRC पर निर्भर है। इस बीच, चीन अपनी आर्कटिक विशेषज्ञता को बढ़ा रहा है, तथा आशा कर रहा है कि उसे एक क्षेत्रीय हितधारक माना जाएगा।
यूक्रेन में रूस का युद्ध PRC के लिए एक “सुनहरा अवसर” है, ऐसा अमेरिका स्थित स्ट्रैटजिक इन्टेलिजेन्स फ़र्म स्ट्राइडर टेक्नोलॉजीज़ ने फरवरी 2024 में बताया था। “हमारे निष्कर्षों से रूस की रणनीतिक बदलाव का पता चलता है, जिसमें सरकारी ख़र्च में कमी और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को शामिल करने के लिए उल्लेखनीय नीतिगत बदलाव… और आर्कटिक में अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए निजी क्षेत्र का निवेश शामिल हैं,” कंपनी के सह-संस्थापक एरिक लेवेस्क (Eric Levesque) ने कहा।
स्ट्राइडर की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2022 से जून 2023 तक रूस के आर्कटिक क्षेत्र में काम करने के लिए 230 से अधिक चीनी कंपनियों ने पंजीकरण कराया है, जो 2020 और 2021 की संयुक्त संख्या की तुलना में 87% की वृद्धि है।
फिर भी, रिश्तों में दरार मौजूद हैं। मास्को को इस बात की चिंता है कि कहीं चीन उसकी क़ीमत पर आर्कटिक क्षेत्र पर बहुत अधिक प्रभाव न जमा ले। इस बीच, PRC इस बात के प्रति संवेदनशील है कि आर्कटिक देश रूस के साथ उसके संबंधों को कैसे देखते हैं और वह “घनिष्ठ लेकिन बहुत घनिष्ठ संबंध नहीं” चाहता है। ट्रोम्सो के द ऑर्कटिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ नॉर्वे के प्रोफ़ेसर और आर्कटिक शोधकर्ता मार्क लांटेग्ने (Marc Lanteigne) ने फ़ोरम को बताया। उन्होंने कहा कि हालाँकि बीजिंग आर्कटिक क्षेत्र में रूस की पर्याप्त उपस्थिति को स्वीकार करता है, लेकिन वह मास्को को एक घटती हुई शक्ति के रूप में भी देखता है, जिस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “चीन संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। मुझे लगता है कि उसे पता चल रहा है कि वह ऐसा नहीं कर सकता,” लांटेग्ने ने कहा।
PRC ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा नहीं की है, या रूसी तेल आयात के विरुद्ध वैश्विक प्रतिबंधों में शामिल नहीं हुआ है। फिर भी वह आर्कटिक परिषद के उन सात देशों के साथ तनाव बढ़ाना नहीं चाहता जो यूक्रेन का समर्थन करते हैं और प्रतिबंधों का सम्मान करते हैं।
“चीन-रूस संबंध बहुत हद तक सुविधा पर आधारित है,” लांटेग्ने ने कहा। “यह अत्यंत नाज़ुक है।”
अपूर्ण मिलन
PRC और रूस दुनिया के सबसे बड़े निरंकुश देशों में से हैं। वे 4,184 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं, उनके बीच गहरे आर्थिक संबंध हैं, वे संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वीटो शक्ति वाले पाँच स्थायी सदस्यों में शामिल हैं। उनकी सबसे बड़ी समानता शायद पश्चिम के प्रति तिरस्कार है।
उनका बाहरी तौर पर सहमत रुख़ कभी-कभी कठिन इतिहास को झुठला देता है। न्यूयॉर्क स्थित थिंक टैंक काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्स (CFR) ने मार्च 2024 में रिपोर्ट दी कि अब भी, बीजिंग और मॉस्को स्वाभाविक साझेदार या औपचारिक सहयोगी नहीं हैं, और विशेषज्ञ उनके संबंधों की मज़बूती पर सवाल उठाते हैं। CFR के अनुसार, कई चीनी और रूसी अधिकारियों, व्यापारिक नेताओं और नागरिकों के बीच ऐतिहासिक मतभेदों और नस्लवाद से प्रेरित अविश्वास है।
1969-89 के दौरान जिसे चीन-सोवियत विभाजन के रूप में जाना जाता है, CCP और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच सीमा विवाद में सात महीने का सैन्य संघर्ष भी शामिल था, जिसमें मार्च 1969 में दोनों देशों को विभाजित करने वाली उसुरी नदी पर झेनबाओ द्वीप के पास एक बड़ी झड़प भी शामिल थी। CFR ने बताया कि साम्यवादी विचारधारा, रूस द्वारा भारत को समर्थन तथा पश्चिमी देशों के साथ काम करने के मुद्दे पर भी मतभेद थे।
दोनों शक्तियों के बीच संबंध धीरे-धीरे स्थिर हो गए, जिसकी परिणति सोवियत संघ के पतन के लगभग एक दशक बाद 2001 में CCP और रूस द्वारा अच्छे पड़ोसी और मैत्रीपूर्ण सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर करने के साथ हुई। यह संबंध तब और मज़बूत हुआ जब 2014 में CCP ने क्रीमिया पर रूस के कब्जे की निंदा करने से इनकार कर दिया, और फिर जब यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पार्टी पीछे हट गई।
दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध विषम हैं, चीन की अर्थव्यवस्था सबसे मज़बूत है, जबकि रूस के पास तेल उद्योग का सबसे अधिक अनुभव है। लांटेग्ने ने कहा कि आर्कटिक क्षेत्र में चीन-रूस आर्थिक सहयोग सीमित है और यह मुख्यतः जीवाश्म ईंधन व्यापार पर आधारित है। CFR ने बताया कि यद्यपि दोनों देशों की सशस्त्र सेनाएँ एक साथ प्रशिक्षण लेती हैं, लेकिन उनकी इंटरऑपरेबिलिटी के स्तर को लेकर संदेह है और दोनों पक्षों ने एक साथ युद्ध नहीं किया है। वे आम तौर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मामलों पर सहमत होते हैं, तथा कभी-कभी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को आगे बढ़ाने के प्रयासों को विफल कर देते हैं।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अधीन क्रेमलिन ने पारंपरिक रूप से अन्य देशों को आर्कटिक से बाहर रखने का प्रयास किया है। स्पोहर ने द डिप्लोमैट को बताया कि यही बात है जो मॉस्को द्वारा बीजिंग के प्रस्तावों को हाल ही में स्वीकार किए जाने को उल्लेखनीय बनाती है।
आर्कटिक इंस्टीट्यूट, ट्रोम्सो के ईटरजॉर्ड ने कहा कि रूस के युद्ध में उलझे रहने के कारण, PRC आर्कटिक क्षेत्र में एकल राष्ट्रीय इकाई के रूप में आगे नहीं बढ़ पाया है। उन्होंने कहा कि 2021 में पंचवर्षीय योजना के बाद, चीनी प्रांतीय सरकारों, कंपनियों, मंत्रालयों और अन्य तत्वों ने बीजिंग के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप अपनी आर्कटिक परियोजनाएँ शुरू कीं।
यद्यपि रूस और CCP के कई हित और दृष्टिकोण समान हैं, फिर भी वे प्रमुख मामलों में भिन्न हैं। रूस अधिक एकाकी बना हुआ है, जबकि CCP अपनी OBOR योजना और वैश्विक सुरक्षा पहल जैसी पहलों के साथ खुले तौर पर वैश्विक आधिपत्य हासिल करना चाहती है। फिर भी यदि CCP आर्कटिक के प्रति अपना आक्रामक रुख़ प्रकट करती है, तो वह आर्कटिक देशों की सद्भावना खो सकती है, जिस पर उसका क्षेत्रीय भविष्य टिका हुआ है।
“रूस बहुत अधिक उत्तेजक है, जबकि चीन पश्चिम के साथ वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मामले में अधिक सावधान, दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपना रहा है,” जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर मारिया रेपनिकोवा (Maria Repnikova) ने, जो PRC और रूस में तुलनात्मक अधिनायकवाद का अध्ययन करती हैं, CFR को बताया।
आर्कटिक में अपनी भूमिका के बारे में बोलते हुए लांटेग्ने ने कहा, “PRC चाहता है कि उसे एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में देखा जाए।” “रूस से जुड़े होने से इस धारणा को बढ़ावा नहीं मिलता।”
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