चीन (PRC) द्वारा सशस्त्रीकरण जल
इंडो-पैसिफ़िक के लिए पर्यावरणीय ख़तरा बना चीन का नवीनतम मेगाडैम
ब्रह्मा चेल्लानी
जल प्राकृतिक संसाधनों में सबसे बहुमूल्य है। पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) तिब्बती पठार पर अपने नियंत्रण के कारण एशिया के जल क्षेत्र पर प्रभुत्व रखता है, जो 1950 के दशक की शुरुआत में माओत्से तुंग (Mao Zedong) के तहत चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) द्वारा कब्जा किए जाने तक भारत के साथ बफ़र के रूप में कार्य करता था।
2022 के मध्य से, बीजिंग ने एक ख़तरनाक बाँध-निर्माण योजना के साथ जल-समृद्ध उच्चभूमि पर उद्भव होने वाली अंतरराष्ट्रीय नदियों के सीमा पार प्रवाह को हथियार बनाने के प्रयासों को बढ़ाकर सुरक्षा चिंताओं को जगा दिया।
तिब्बती पठार एशिया की 10 प्रमुख नदी प्रणालियों का आरंभ बिंदु है और दर्जन भर से अधिक देशों के लिए नदियों का स्रोत है, जो चीन की अद्वितीय तटवर्ती स्थिति को रेखांकित करता है। तथापि, चीन के पास तटवर्ती राज्यों के बीच स्थिर, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की कुंजी होने के बावजूद, चीन सरकार किसी भी नदी-तटवर्ती देश के साथ कोई जल-बँटवारे की व्यवस्था या सहयोग संधि करने के पक्ष में नहीं है। इसके विपरीत, भारत की बांग्लादेश और नेपाल सहित अपने अधिकांश पड़ोसियों के साथ जल-बँटवारे की व्यवस्था है।
चीन का बाँध-निर्माण उन्माद उत्तरोत्तर अंतरराष्ट्रीय नदियों पर केंद्रित हो गया है। अंतर-तटीय संबंधों में तिब्बती पठार पर अपने नियंत्रण का लाभ उठाने का बीजिंग का प्रयास, उसके व्यापक भू-राजनीतिक उद्देश्यों का अभिन्न अंग है। वह तेज़ी से विषम या संकर युद्ध को नियोजित कर रहा है, जिसे “अप्रतिबंधित युद्ध” (unrestricted war) के रूप में भी जाना जाता है, जिस शब्द को चीनी सैन्य अधिकारियों द्वारा 20 साल से भी अधिक समय पहले गढ़ा गया था।
इस मॉडल के माध्यम से — जो सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष युद्ध को अपनाता है — चीन ने विस्तारवादी और ज़ोर-ज़बरदस्ती के एजेंडे को आगे बढ़ाया है। लेकिन उसने हमेशा अपनी आक्रामक कार्रवाइयों को रक्षात्मक या शांतिपूर्ण के रूप में छिपाने की कोशिश की है। जल का सशस्त्रीकरण बीजिंग की अप्रतिबंधित युद्ध की रणनीति से मेल खाता है।
अद्वितीय मेगाडैम
चीन, तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बाँध बना रहा है। यह परियोजना बेहद जोखिम भरी भी है। विशाल बाँध के संबंध में बांग्लादेश और भारत में चिंताएँ बढ़ रही हैं, कम से कम आंशिक रूप से, क्योंकि यह भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में बनेगा। यह स्थान संभावित रूप से समय के साथ इसे अनुगामी जलप्रवाह वाले समुदायों के लिए जल बम बना देगा।
इसके साथ ही, ख़तरनाक इलाक़े में दुनिया के बेहद शक्तिशाली जलविद्युत ढाँचे के निर्माण के जोखिम को भी जोड़ लें, जो शायद दुनिया की किसी भी नदी का कल्पना से परे का उग्र विस्तार है। ब्रह्मपुत्र हिमालय के चारों ओर तेज़ी से मुड़ती है, जिससे दुनिया की सबसे लंबी और उतार-चढ़ाव वाली घाटी बनती है — जो संयुक्त राज्य अमेरिका के ग्रांड कैन्यन से दोगुनी गहरी है। 6,008 मीटर नीचे ढलान वाली यह घाटी, एशिया के सबसे बड़े अप्रयुक्त जल संसाधन को धारण किए हुए है।
दक्षिण-पश्चिम चीन भूकंप-प्रवण है क्योंकि यह ऐसी भूगर्भिक लंबी दरारों पर स्थित है जहाँ भारतीय और यूरेशियाई प्लेटें टकराती हैं। 2008 में तिब्बती पठार के पूर्वी हिस्से में आए भूकंप में 87,000 लोगों की मौत हुई थी, जिसके लिए कुछ चीनी और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ज़िपिंगपु बाँध को ज़िम्मेदार ठहराया था, जहाँ भूकंपीय दरार से सटकर चार साल पहले काम करना चालू हो गया था। वैज्ञानिकों का तर्क है कि बाँध के विशाल भंडार में पानी के भार के कारण भूकंप आया।
इस प्रकाश में, पठार पर चीन का बाँध निर्माण वैध सुरक्षा चिंताओं को जन्म देता है। यदि मेगाडैम ढह गया, तो बहाव क्षेत्र तबाह हो जाएगा। 2020 में, रिकॉर्ड बाढ़ ने यांग्त्ज़ी नदी पर चीन के विवादास्पद थ्री गॉर्जेस डैम को ख़तरे में डाल दिया, जिससे 40 करोड़ (400 मिलियन) चीनी लोग ख़तरे में पड़ गए।
थ्री गॉर्जेस दुनिया का सबसे बड़ा बाँध है, लेकिन ब्रह्मपुत्र परियोजना के सामने यह बाँध बौना होकर रह जाएगा। यह विशाल बाँध भारत से लगी लंबी सैन्यीकृत सीमा के बेहद क़रीब होगा। सुदूर उत्तर के भारतीय क्षेत्र लद्दाख में बीजिंग के गुप्त अतिक्रमण के बाद तीन साल से अधिक समय से राष्ट्र अपनी हिमालयी सीमा पर तनावपूर्ण सैन्य गतिरोध से अवरुद्ध है। यह मेगाडैम चीन को भारत पर आधिपत्य जमाने में सक्षम बनाएगा। 2020 के अंत में, चीनी कम्युनिस्ट मुखपत्र, ग्लोबल टाइम्स अख़बार ने नई दिल्ली से “यह आकलन करने का आग्रह किया कि चीन कैसे सीमा पार जल को हथियार बनाकर संभवतः” भारतीय अर्थव्यवस्था का गला घोंट सकता है।
ब्रह्मपुत्र को तिब्बती लोग यारलुंग त्संगपो के नाम से जानते हैं, जो यारलुंग घाटी से निकला हुआ नाम है, जिसे तिब्बती सभ्यता का उद्गम स्थल और पहले तिब्बती साम्राज्य का आधार माना जाता है। यह छोटी, लेकिन सामरिक महत्व की घाटी भूटान और भारत के प्राचीन व्यापारिक मार्गों को नियंत्रित करती थी।
तिब्बती संस्कृति में, नदी, देवी दोर्जे फ़ाग्मो की रीढ़ का प्रतिनिधित्व करती है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च अवतारों में से एक है। घाटी क्षेत्र के प्रमुख पहाड़, चट्टानें और गुफाएँ देवी के शरीर के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
यह मेगाडैम तिब्बत का सबसे पवित्र स्थान माने जाने वाले पेमाको में बनाया जा रहा है। पेमाको एक “बेयुल” है, यानी ऐसी जगह जहाँ भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया परस्पर व्याप्त हैं। प्रकृति के प्रति सम्मान तिब्बती संस्कृति में गहराई से निहित है — पठार के अद्वितीय परिदृश्य से पैदा हुई श्रद्धा — और संस्कृति ने लंबे समय से पर्यावरण संरक्षक के रूप में कार्य किया है।
बहरहाल, चीनी शासन ने दुनिया के सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक, तिब्बत में व्यापक सांस्कृतिक और पर्यावरणीय क्षति पहुँचाई है। अपने मेगाप्रॉजेक्ट के साथ, चीन, तिब्बतियों के सबसे पवित्र स्थान, घाटी क्षेत्र को अपवित्र कर रहा है, जो तिब्बत के रक्षक देवता का प्रतीक है। इस मेगाडैम के साथ, एक और पवित्र क्षेत्र को अपवित्र किया जा रहा है।
निर्माण को मार्च 2021 में मंज़ूरी दी गई थी, जब CCP की संसद ने CCP महासचिव शी जिनपिंग (Xi Jinping) के शासन के निर्णय पर मुहर लगाई थी। मंज़ूरी से ठीक पहले, चीन ने अपनी 14वीं पंचवर्षीय योजना का अनावरण किया, जिसमें कहा गया कि मेगाप्रोजेक्ट पाँच साल के भीतर लागू किया जाएगा।
अक्तूबर 2020 में, तिब्बत की स्थानीय सरकार ने जलविद्युत परियोजनाओं में विशेषज्ञता वाली सरकार द्वारा संचालित निर्माण कंपनी पावरचाइना (PowerChina) के साथ मेगाप्रॉजेक्ट के संबंध में “रणनीतिक सहयोग समझौते” को मंज़ूरी दी। एक महीने बाद, पावरचाइना के प्रमुख, यान ज़िहियोंग (Yan Zhiyong) ने कम्युनिस्ट यूथ लीग को बताया कि मेगाडैम “जलविद्युत संसाधनों के मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध क्षेत्र” होगा, और इस योजना को ब्रह्मपुत्र पर बाँध बनाने का “ऐतिहासिक अवसर” बताया।
यह बाँध, तिब्बत के मेटोक प्रांत में, जिसे मेडोग के नाम से भी जाना जाता है, पेमाको के मध्य में, नदी के भारत में प्रवेश करने से ठीक पहले बन रहा है। यह अनुमानित रूप से सालाना 300 अरब (300 बिलियन) किलोवाट बिजली पैदा करेगा, जो थ्री गॉर्जेस से लगभग तीन गुना अधिक है। 1994 और 2012 के बीच, थ्री गॉर्जेस के निर्माण से कम से कम 13 लाख (1.3 मिलियन) लोग विस्थापित हुए।
ब्रह्मपुत्र का जलक्षेत्र ऐतिहासिक रूप से पूर्वी हिमालय में भारत और तिब्बत के बीच की सीमा को परिभाषित करता है। पश्चिमी तिब्बत के ग्लेशियरों से, यह नदी समुद्र तल से 5,000 मीटर से अधिक ऊँचाई से निकलती है, जो इसे दुनिया की सबसे ऊँची नदी बनाती है जब वह पहाड़ों से होकर गुज़रती है।
भारत में प्रवेश करने से पहले, नदी 2,700 मीटर से अधिक नीचे की ओर प्रवाहित होती है और बेजोड़ घाटी बनाती है, जो हिमालय की दो सबसे ऊँची चोटियों, नामचा बरवा और ग्याला पेरी के बीच स्थित है। चीनी बाँध निर्माता पहाड़ी सुरंग के ज़रिए पानी को मोड़कर जल विद्युत का दोहन करना चाहते हैं।
मेगाप्रोजेक्ट के संभावित पर्यावरणीय विनाश का खमियाज़ा भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र और उससे भी ज़्यादा बांग्लादेश को भुगतना पड़ेगा, जो देश का सुदूर अनुगामी प्रवाह क्षेत्र है। बड़े पैमाने पर निचले डेल्टा वाला देश पहले से ही जलवायु और पर्यावरण परिवर्तन से ख़तरे में है। चीन की बाँध परियोजना से स्थिति और बिगड़ जाएगी।
इससे शरणार्थियों का भारत में अधिक पलायन हो सकता है, जो पहले से ही अवैध रूप से बसे लाखों बांग्लादेशियों का घर है। दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले देशों में से एक, बांग्लादेश के लिए ब्रह्मपुत्र मीठे पानी का सबसे बड़ा स्रोत है। लगता है इनमें से कोई भी शी के शासन को परेशान नहीं करता है।
जल-आधिपत्य
इस परियोजना के साथ, चीन तिब्बत की सीमा पर स्थित भारत के अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावों को आगे बढ़ाने के लिए जल प्रवाह के नियंत्रण का भी लाभ उठा सकता है। भारत को उकसाने के लिए बीजिंग इस क्षेत्र को दक्षिणी तिब्बत कहता है।
मूलभूत रूप से, यह बाँध चीन को अपनी सीमाओं के बाहर लाखों लोगों के लिए महत्वपूर्ण संसाधन को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने देगा। ब्रह्मपुत्र के ऊपरी क्षेत्र पहले से ही दर्जन भर या उससे अधिक छोटे या मध्यम आकार के चीनी बाँधों का स्थल है। चीन की अपस्ट्रीम गतिविधियों ने भारतीय सीमावर्ती राज्यों में अचानक बाढ़ को उत्प्रेरित किया है और हाल ही में, ब्रह्मपुत्र की मुख्य धमनी — प्राचीन सियांग — को मैला और भूरा कर दिया है।
पारदर्शिता और सहयोग, जल अधिकारों पर शांतिपूर्ण संबंधों की आधारशिला हैं। लेकिन चीन इन उसूलों को स्वीकार नहीं करता है। वह आम तौर पर प्रमुख बाँध परियोजनाओं को तब तक गुप्त रखता है जब तक कि सबूत वाणिज्यिक उपग्रहों से छिपाए न जा सकें। इससे पता चलता है कि मंज़ूरी के बाद से बीजिंग ने अपनी मेगाडैम परियोजना पर कोई जानकारी क्यों जारी नहीं की है।
मेगाडैम की मंज़ूरी से पूर्व के वर्षों में, चीन ने निर्माण की सुविधा के लिए घाटी के आस-पास आधारभूत संरचना के काम को बढ़ाया। मई 2021 में अधिकारियों ने “दुनिया की सबसे गहरी घाटी के ज़रिए राजमार्ग” के पूरा होने की घोषणा की। यह राजमार्ग तिब्बत की सीमा पर स्थित भारतीय गाँव बिशिंग में ख़त्म होता है।
अगले महीने, चीन ने तिब्बत का पहला विद्युतीकृत रेलवे लॉन्च किया, जो क्षेत्रीय राजधानी ल्हासा से ब्रह्मपुत्र घाटी के बग़ल में न्यांगत्री तक चलता है। चीनी अधिकारियों ने जुलाई 2021 में उच्च-ऊँचाई वाले रेलवे को CCP के शताब्दी उत्सव के अवसर पर उपहार कहा।
रेलमार्ग और राजमार्ग का उपयोग भारी उपकरण, सामग्री और श्रमिकों को मेगाडैम के दूरस्थ स्थलों तक पहुँचाने के लिए किया जाता है, जो लंबे समय से दुर्गम होने के कारण ख़तरनाक इलाक़ा माना जाता था। रेलमार्ग के सैन्य निहितार्थ भी हैं, जो तब और भी मज़बूत होंगे जब दक्षिण-पश्चिम चीन के सिचुआन से भारतीय सीमा तक दूसरी लाइन पूरी हो जाएगी। ल्हासा-न्यांगत्री रेलमार्ग पड़ोसी सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू तक निर्माणाधीन रेलवे का हिस्सा है।
बड़े प्रभाव
ब्रह्मपुत्र बाँध परियोजना उस रणनीति का हिस्सा है जिसने चीन को तिब्बती पठार पर अपने नियंत्रण का लाभ उठाकर सीमा पार नदी प्रवाह की पुनर्रचना को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। जहाँ मीठे पानी की कमी एशिया के आर्थिक भविष्य को ख़तरे में डाल रही है, वहीं चीन का साझा जल विनियोजन अंतरराष्ट्रीय नदियों के किनारे बड़े बाँधों और जलाशयों के निर्माण पर केंद्रित है। चीन एशिया के नल पर अपना हाथ मज़बूती से रखने के लिए अपने जल-आधिपत्य को अपस्ट्रीम जल नियंत्रण में बदलना चाहता है।
चीन द्वारा अपनी आंतरिक नदियों पर अत्यधिक बाँध बनाने से पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर रूप से बिगड़ गया है, जिससे नदी, विखंडन और रिक्तीकरण का कारण बन रही है। इससे बाढ़ चक्र भी बाधित हो गया है, जो पोषक तत्वों से भरपूर गाद फैलाकर कृषि भूमि को प्राकृतिक रूप से उर्वर बनाने में मदद करता है। सवाल यह कि चीन को इसी तरह की उन अंतरराष्ट्रीय नदियों को नुक़सान पहुँचाने से कैसे रोका जा सकता है जिन पर तेज़ी से बाँध बनाया जा रहा है।
निचले मेकांग नदी बेसिन को चेतावनी के रूप में काम करना चाहिए था। फिर भी, मेकांग पर — जो कई दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लिए जीवनधारा है — 11 मेगाडैम बनाकर डाउनस्ट्रीम देशों में बार-बार सूखा पैदा करने के बाद चीन ने अब दुनिया की सर्वाधिक ऊँचाई वाली प्रमुख नदी, ब्रह्मपुत्र के प्रचुर संसाधनों पर अपनी नज़रें गड़ा दी हैं।
बीजिंग के क्षेत्रीय और समुद्री विस्तारवाद के पैटर्न को ध्यान में रखते हुए, जल-विनियोजन रणनीति ने कंबोडिया, लाओस और थाईलैंड से लेकर नेपाल तक — मित्रवत या विनम्र पड़ोसियों को भी नहीं बख्शा है। दरअसल, दक्षिणी चीन सागर और हिमालय में चीन के क्षेत्रीय कब्ज़े के साथ-साथ, जहाँ उसने छोटे से भूटान को भी निशाना बनाया है, अंतरराष्ट्रीय नदी घाटियों में मीठे पानी के कब्ज़े पर भी शायद ही ध्यान दिया गया है। ऐसे कार्यों को देखते हुए, चीन द्वारा प्रतिद्वंद्वी भारत में बहने वाली ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों को निशाना बनाना कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।
विश्वास का उल्लंघन
चीन मानसून के महत्वपूर्ण मौसम के दौरान हाइड्रोलॉजिकल डेटा को रोककर पानी का सशस्त्रीकरण भी करता है, जिससे अक्सर व्यापक बाढ़ आती है। 2017 में, भारत द्वारा शी (Xi) की वन बेल्ट, वन रोड आधारभूत संरचना योजना के शुरुआती शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करने के बाद, बीजिंग ने भारत की प्रारंभिक बाढ़ चेतावनी प्रणालियों की अनदेखी करते हुए, नई दिल्ली से डेटा छिपाना शुरू कर दिया।
उस वर्ष भारत के उत्तर-पूर्व में, जहाँ से होकर ब्रह्मपुत्र नदी, तिब्बत छोड़ने के बाद और बांग्लादेश में प्रवेश करने से पहले बहती है, सामान्य से कम मानसून की बारिश के बावजूद, इस क्षेत्र को, ख़ासकर असम राज्य में अभूतपूर्व और विनाशकारी बाढ़ का सामना करना पड़ा। चीन ने 2018 में फिर से भारत के साथ हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा करना शुरू किया, लेकिन ऐसे डेटा को साझा करने से इनकार करने के बाद ही, जिससे असम में जो मौतें हुईं उससे बच जा सकता था।
इस प्रकरण ने क़ानूनी दायित्वों के प्रति बीजिंग के तिरस्कार को उजागर किया। डेटा निलंबन ने दो द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन किया, जहाँ अपेक्षा थी कि चीन दैनिक हाइड्रोलॉजिकल डेटा स्थानांतरित करे, जिसके लिए भारत ने अग्रिम भुगतान किया था।
जब समझौते राजनीतिक रूप से सुविधाजनक नहीं रह जाते, तो वे CCP के लिए बाध्यकारी होना बंद हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत और चीन के बीच सैन्य गतिरोध बीजिंग द्वारा द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन करने का परिणाम है, जो विवादित सीमा पर सैन्य बलों के जमावड़े पर रोक लगाता है।
मेगाडैम परियोजना, समुदायों या पारिस्थितिकी तंत्र के परिणामों के बावजूद दुनिया की सबसे ऊँची, सबसे बड़ी, सबसे गहरी, सबसे लंबी और उच्चतम जलविद्युत परियोजनाओं — के निर्माण पर चीन के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है।
परिणामस्वरूप, हज़ारों ग्लेशियरों का घर और एशिया की सबसे बड़ी नदी प्रणालियों के स्रोत, ग्रेट हिमालयन वाटरशेड की सुरक्षा करना अनिवार्य हो गया है, जो दुनिया के लगभग आधे लोगों की जीवनधारा है। हिमनदों का क्षरण पहले ही एक समस्या है। एशिया का पर्यावरणीय कल्याण काफ़ी हद तक चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय नदियों पर संस्थागत सहयोग को स्वीकार करने पर निर्भर करता है, जिसमें पारिस्थितिक रूप से नाज़ुक क्षेत्रों की रक्षा करना और अपनी बाँध परियोजनाओं के बारे में पारदर्शी होना शामिल है। हालाँकि, जब तक CCP सत्ता में रहेगी, बीजिंग संभवतः चोरी-छिपे जल युद्ध जारी रखेगा।
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