समुद्री दोराहे पर स्वतंत्र और खुला हिंद महासागर
फ़ोरम स्टाफ़
चीन की बढ़ती उपस्थिति ने हिंद महासागर में तनाव बढ़ा दिया है। महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के जमावड़े के साथ-साथ, वन बेल्ट, वन रोड (OBOR) इन्फ़्रास्ट्रक्चर योजना और तटीय देशों पर ऋण के बोझ ने भारत और अन्य राष्ट्रों को ख़तरे में डाल दिया है।
कार्नेगी एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस की जून 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का एक-तिहाई से अधिक थोक माल और दो-तिहाई तेल और गैस शिपमेंट हिंद महासागर से होकर गुज़रता है, जो क्षेत्र पूर्वी अफ्रीका से पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया तक फैला हुआ है और 290 करोड़ (2.9 बिलियन) लोगों का घर है। समुद्री परिवहन थोक माल को स्थानांतरित करने का सबसे सस्ता, सबसे कुशल तरीक़ा है, और हिंद महासागर के समुद्री मार्ग खाद्य-पदार्थ, खनिज, बहुमूल्य धातुओं तथा ऊर्जा संसाधनों तक वैश्विक पहुँच प्रदान करते हैं।
हिंद महासागर के तीन चोकप्वाइंट — भू-भागों के बीच संकीर्ण शिपिंग लेन — अधिकांश व्यापार को सँभालते हैं: फ़ारस की खाड़ी के मुहाने पर होर्मुज़ जलडमरूमध्य; हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका और अरब प्रायद्वीप के बीच बाब अल-मंदेब जलडमरूमध्य; तथा मलक्का जलडमरूमध्य, जो हिन्द और प्रशांत महासागरों के बीच मुख्य शिपिंग चैनल है। संयुक्त राज्य अमेरिका, सहयोगी और भागीदार सुरक्षित समुद्री मार्गों के ज़रिए आर्थिक समृद्धि का आश्वासन देते हैं। हालाँकि, भू-राजनीतिक संघर्षों से व्यापार और सुरक्षा को ख़तरा है, क्षेत्र की समुद्री संचार लाइनों पर नियंत्रण एक महत्वपूर्ण बिंदु के रूप में सामने आता है।
पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) का पाँच-चौथाई तेल मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुज़रता है और देश के नेता वर्षों से चिंतित हैं कि शिपिंग लेन की नाकाबंदी से देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुक़सान हो सकता है। बीजिंग ने OBOR के समुद्री खंडों के हिस्से के रूप में दक्षिण एशियाई देशों में वाणिज्यिक बंदरगाहों और संबंधित ढाँचों के निर्माण, ईरान, पाकिस्तान और रूस के साथ समुद्री अभ्यास, और अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए अन्य देशों की बढ़ती आर्थिक निर्भरता का लाभ उठाते हुए परिचालनों का विस्तार किया है, यू.एस.-स्थित अटलांटिक काउंसिल थिंक टैंक ने अगस्त 2023 में रिपोर्ट दी।
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफ़ेसर जोशुआ टी. व्हाइट (Joshua T. White) ने जून 2020 में ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट में लिखा कि चीन के हिंद महासागरीय नौसैनिक बेड़े में हाल के दशकों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे इसके तटों से दूर सैन्य लाभ की संभावना बढ़ गई है। व्हाइट ने लिखा, भारत, अमेरिका और उनके सहयोगियों व साझेदारों को ऐसी चीनी तैनातियों पर नज़र रखनी चाहिए जो समुद्री डकैती का मुक़ाबला करने या मानवीय गतिविधियों को शुरू करने, खुफ़िया जानकारी इकट्ठा करने के लिए नए समुद्र-आधारित साधनों तथा संभावित संघर्ष के दौरान रसद नेटवर्क की प्रतिरोधक्षमता बढ़ाने के प्रयास, जो ज़रूरत से ज़्यादा हों।
“हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति ने कुछ देशों की, विशेष रूप से भारत की चिंताएँ बढ़ा दी हैं, जो चीन की गतिविधियों को क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाने की सामरिक चुनौती के रूप में देखता है,” नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर के सहायक प्रोफ़ेसर और पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक सज्जाद अशरफ़ (Sajjad Ashraf) ने अप्रैल 2023 में चाइना-यू.एस. फ़ोकस वेबसाइट पर लिखा। उन्होंने कहा कि हिंद महासागर “प्रमुख प्रतिस्पर्धी फ़्लैशप्वाइंट” भी है।
हिंद महासागर के किनारे चीनी बंदरगाह और आधारभूत परियोजनाओं में शामिल हैं: चिटगाँव, बांग्लादेश में कर्णफुली नदी के मुहाने के पास; ग्वादर, पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के सैन्य अड्डे पर; श्रीलंका में हंबनटोटा; और पश्चिमी म्यांमार में बंगाल की खाड़ी के किनारे क्याउकप्यु।
चीनी सरकार की स्वामित्व वाली कंपनियों ने हवाई अड्डों, पाइपलाइन और संचार नेटवर्क सहित कई परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है। कुछ वित्तपोषण प्राप्तकर्ता राष्ट्रों को अपने ऋण दायित्वों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, 2017 में, जब श्रीलंका ऋण भुगतान में चूक गया, तो PRC के स्वामित्व वाली कंपनी ने 99 साल की लीज़ पर हंबनटोटा बंदरगाह का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
नई दिल्ली को लंबे समय से चिंता है कि बीजिंग अपने नौसैनिक अभियानों को सुगम करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से वाणिज्यिक बंदरगाहों का उपयोग कर सकता है। तथापि ऐसे संकेत भी हैं कि भारत ने PRC के प्रभाव हासिल करने के प्रयासों को सफलतापूर्वक पीछे धकेल दिया है, जैसा कि अमेरिका स्थित थिंक टैंक रैंड कॉर्प ने अगस्त 2023 में रिपोर्ट किया था: “कुल मिलाकर, भारत दक्षिण एशिया में सामरिक प्रतिस्पर्धा जीतता दिख रहा है। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि स्थिति यथावत रहेगी।”
कार्नेगी एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया कार्यक्रम की सदस्य दर्शना एम. बरुआ (Darshana M. Baruah) के अनुसार, हिंद महासागर पर संपूर्ण रूप से विचार किया जाना चाहिए, न कि उप-क्षेत्रों में विभाजित करके। राष्ट्रों को प्रयास करना चाहिए कि इस क्षेत्र को समझें, “चाहे वह अवैध मछली पकड़ना हो, समुद्री डकैती हो, जलवायु परिवर्तन हो, समुद्री डोमेन जागरूकता हो या पनडुब्बी रोधी युद्ध,” बरुआ ने अप्रैल 2023 में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के समक्ष गवाही दी।
वे और अन्य विश्लेषक हिंद महासागर के समुद्री मार्गों को मुक्त और खुला रखने के लिए समन्वित क्षेत्रीय प्रयास के पक्ष में हैं। “हिंद महासागर के प्रति सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण और समुद्री पहचान स्थापित करने से सभी तत्वों के बीच बेहतर समन्वय और सहयोग संभव होगा,” बरुआ और अन्य कार्नेगी शोधकर्ताओं ने लिखा।
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