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चीन से हटती दिलचस्पी से लाभान्वित होते भारतीय दवा निर्माता

रॉयटर्स

अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि दवा निर्माता क्लिनिकल परीक्षण और प्रारंभिक चरण के निर्माण के लिए दवाओं का उत्पादन करने के लिए चीनी ठेकेदारों पर अपनी निर्भरता को सीमित करना चाह रहे हैं, यह एक ऐसा क़दम है, जिससे भारतीय कंपनियों को फ़ायदा हो रहा है।

कम लागत और तेज़ गति जैसे कारकों ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना (PRC) में अनुबंधित दवा निर्माताओं को लगभग 20 वर्षों तक फ़ार्मास्युटिकल अनुसंधान और विनिर्माण सेवाओं के लिए पसंदीदा विकल्प बना दिया। COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के बावजूद यह काफ़ी हद तक सच रहा है। हालाँकि, बीजिंग के साथ बढ़ता तनाव अनेक सरकारों को यह सिफ़ारिश करने के लिए प्रेरित कर रहा है कि कंपनियाँ ख़ुद को चीन की आपूर्ति शृंखलाओं के “जोखिम से मुक्त” करें।

इससे बायोटेक कंपनियाँ क्लिनिकल परीक्षण या अन्य आउटसोर्स कार्य के लिए सक्रिय फ़ार्मास्युटिकल सामग्री का उत्पादन करने के लिए भारत में निर्माताओं का उपयोग करने पर विचार कर रही हैं।

“आज, आप शायद किसी चीनी कंपनी को RFP [प्रस्ताव के लिए अनुरोध] नहीं भेज रहे हैं,” न्यूयॉर्क स्थित निवेश बैंकिंग फ़र्म जेफ़रीज़ में हेल्थकेयर निवेश बैंकिंग के वैश्विक सह-प्रमुख टॉमी एर्देई (Tommy Erdei) ने कहा। “यह इस कथन जैसा है कि ‘मैं जानना नहीं चाहता, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि वे इसे सस्ते में उपलब्ध करा सकते हैं, मैं अपना उत्पाद चीन में भेजना शुरू नहीं करूँगा।'”

प्रारंभिक परीक्षणों में टाइप 2 मधुमेह और मोटापे के उपचार का परीक्षण करने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित बायोटेक फ़र्म ग्लाइसेंड थेरेप्यूटिक्स के संस्थापक डॉ. आशीष निमगांवकर (Ashish Nimgaonkar) इस पर सहमत हुए। उन्होंने कहा, “पिछले कई वर्षों में सभी कारकों ने चीन को हमारे लिए कम आकर्षक विकल्प बना दिया है।”

निमगांवकर ने कहा कि जब ग्लाइसेंड, दवा विकास चरण में बाद में प्रस्तावों का अनुरोध करेगा तो भारतीय अनुबंध विकास और विनिर्माण संगठनों (CDMOs) को प्राथमिकता दी जाएगी।

भारत के चार सबसे बड़े CDMOs — सिनजीन, एराजेन लाइफ़ साइंसस, पिरामल फ़ार्मा सोल्यूशन्स और साई लाइफ़ साइंसेज़ — ने कहा कि 2023 में बहुराष्ट्रीय कंपनियों सहित पश्चिमी फ़ार्मास्युटिकल कंपनियों की दिलचस्पी और अनुरोध बढ़ गए हैं।

कंपनियों के अधिकारियों ने कहा कि कुछ ग्राहक भारत को दूसरे विनिर्माण स्रोत के रूप में जोड़ना चाहते हैं, जबकि अन्य कंपनियाँ चीन छोड़कर भारत में अपनी आपूर्ति शृंखला शुरू करना चाहती हैं।

भारत अपने 4200 करोड़ ($42 बिलियन) अमेरिकी डॉलर के फ़ार्मास्यूटिकल्स उद्योग की बिक्री बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास कर रहा है।

भारत स्थित शोध फ़र्म मॉरडॉर इंटेलिजेंस का अनुमान है कि 2023 में देश के CDMO उद्योग से राजस्व चीन के 2710 करोड़ ($27.1 बिलियन) अमेरिकी डॉलर की तुलना में 1560 करोड़ ($15.6 बिलियन) अमेरिकी डॉलर होगा। हालाँकि, अगले पाँच वर्षों में भारत की वार्षिक राजस्व वृद्धि 11% से अधिक होने का अनुमान है, जबकि चीन का औसत 9.6% है।

साई लाइफ़ साइंसेज़ ने कहा कि 2019 के बाद से उसकी विनिर्माण क्षमता लगभग दोगुनी हो गई है, जब कि आने वाले वर्ष में 25% अतिरिक्त विस्तार की योजना है।

अराजेन के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी रमेश सुब्रमणियन (Ramesh Subramanian) ने, जहाँ पिछले पाँच वर्षों में कर्मचारियों की संख्या 2,500 से बढ़कर 4,500 हो गई है, गए हैं, कहा कि 2022 में 21% की राजस्व वृद्धि आंशिक रूप से पश्चिमी बायोटेक फ़र्मों के साथ नए अनुबंधों से प्रेरित थी।


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