इंडो-पैसिफ़िक राष्ट्रों द्वारा संयुक्त राष्ट्र के शांति प्रयासों का नेतृत्व
फ़ोरम स्टाफ़
इंडो-पैसिफ़िक देश दुनिया भर में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में शीर्ष योगदानकर्ता बन गए हैं, और संयुक्त राष्ट्र शांतिदूतों के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर अन्य देशों के शांतिदूतों के साथ उनकी उपलब्धियों व बलिदानों को सम्मानित किया जाएगा।
29 मई को, यू.एन. उन सैन्य कर्मियों, पुलिस अधिकारियों और नागरिकों को मान्यता देता है, जिन्होंने संघर्ष से तबाह राष्ट्रों की मदद की है, जिसमें ऐसा करते हुए मारे गए हज़ारों लोग भी शामिल हैं। हालाँकि अफ्रीका और मध्य पूर्व, वर्तमान शांति प्रयासों के प्राथमिक केंद्र हैं, लेकिन इंडो-पैसिफ़िक को भी आर्थिक, मानवीय, सामाजिक और मानवाधिकार सहायता प्राप्त हुई है।
पर्यवेक्षकों के अनुसार अपनी सीमाओं के भीतर संयुक्त राष्ट्र अभियानों के प्रत्यक्ष अनुभव ने इंडो-पैसिफ़िक देशों को शांति अभियानों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है। ऑस्ट्रेलियाई सामरिक नीति संस्थान की दिसंबर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, वैसे तो तिमोर-लेस्ते और वेस्ट न्यू गिनी जैसे प्रशांत क्षेत्रों में शांति कार्य के अनेक प्रलेखन हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में प्रशांत द्वीपीय देशों के योगदान (PIC) के बारे में बहुत कम शोध हुआ है। इस वजह से यह समझना मुश्किल हो जाता है कि राष्ट्र क्यों भाग लेते हैं, भाग लेने में आने वाली बाधाएँ क्या-क्या हैं और उनके क्या परिणाम हो सकते हैं। (चित्र में: मार्च 2023 में बगदाद, इराक़ में सेवारत फिजी गणराज्य के शांतिदूत सैनिकों की समीक्षा करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस।)
2000 के दशक की शुरुआत में आधा दर्जन से अधिक पैसिफ़िक देशों ने संयुक्त राष्ट्र को तिमोर-लेस्ते में शांति स्थापित करने में मदद की, और बाद में अपनी विशेषज्ञता को दुनिया भर के अभियानों में इस्तेमाल किया। उदाहरण के लिए, फरवरी 2023 के अंत तक फिजी में 326 सैन्य और क़ानून प्रवर्तन कर्मियों को शांतिदूत सैनिकों के रूप में तैनात किया गया, संयुक्त राष्ट्र ने सूचित किया।
उसी समय, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में 7,269 कर्मियों के साथ बांग्लादेश वर्दीधारी कर्मियों का दुनिया का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बना, जिसके बाद आते हैं नेपाल से 6,264 और भारत से 6,090 तैनात कर्मी।
1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने राहत प्रदान की और लाखों शरणार्थियों को उनकी मातृभूमि में बसाने में मदद की।
दक्षिण एशियाई राष्ट्र ने पहली बार 1988 में ईरान और इरा़क के बीच युद्धविराम की निगरानी के लिए संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूत के रूप में वर्दीधारी कर्मियों को तैनात किया था। तब से, संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्वव्यापी अभियानों में उसका अत्यधिक योगदान रहा है। यथा फरवरी 2023 के अंत तक, बांग्लादेशी शांतिदूत सैनिक मध्य अफ्रीकी गणराज्य, साइप्रस, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लेबनान, लीबिया, माली, दक्षिण सूडान, सूडान, पश्चिमी सहारा और यमन में सेवारत थे।
29 मई 1948 से, जब प्रथम संयुक्त राष्ट्र शांतिदूत सैनिकों ने फिलिस्तीन में अभियान शुरू किया, 120 से अधिक देशों और क्षेत्रों के 20 लाख (2 मिलियन) से अधिक कर्मियों ने देशों को युद्ध से शांति की ओर बढ़ने में मदद की है, संयुक्त राष्ट्र ने बताया। स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग करते हुए शांतिदूत, राजनीतिक समाधान तैयार करने, संघर्ष को रोकने, नागरिकों की रक्षा करने, मानवाधिकारों और क़ानून के शासन को बढ़ावा देने और स्थायी शांति का निर्माण करने में मदद करते हैं।
“संयुक्त राष्ट्र के शांतिदूत सैनिक अधिक शांतिपूर्ण दुनिया के लिए हमारी प्रतिबद्धता के धड़कते दिल हैं,” संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा।
छवि साभार: सरमद अल-सैफ़ी / संयुक्त राष्ट्र
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