क्षेत्रीयदक्षिण एशियादक्षिणपूर्व एशिया / एसईएमहत्वपूर्ण मुद्देविषम ख़तरेसाझेदारी

ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा के खतरों पर प्रतिप्रहार

बढ़ती क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने के लिए देशों को मजबूत साझेदारी करनी चाहिए

श्रीपर्णा बनर्जी (Sreeparna Banerjee) और प्रात्नाश्री बसु (Pratnashree Basu)/ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन

शी त युद्ध के अंत के बाद सुरक्षा की धारणा में बदलाव के परिणामस्वरूप सैन्येतर — अतः, ग़ैर-पारंपरिक — सुरक्षा के खतरों को जगह दी जाने लगी। गै़र-पारंपरिक सुरक्षा (एनटीएस) में जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा और भोजन जैसे संसाधनों की कमी, संक्रामक रोगों, प्राकृतिक आपदाओं, अंतरराष्ट्रीय अपराध, मानव और नशीली दवाओं की तस्करी और बड़े पैमाने पर प्रवास जैसी मानव सुरक्षा की चिंताओं का विस्तार शामिल है। विश्लेषकों ने इसे मानव सुरक्षा-विकास गठजोड़ कहा है। ये एनटीएस क्षेत्र आम तौर पर क्षेत्रीय अतिक्रमण जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के तात्कालिक खतरों पर चर्चा के दायरे से बाहर हो गए हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करने वालों की भागीदारी भी आवश्यक होती है।

यह रिपोर्ट इस बात की पड़ताल करती है कि इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में मजबूत साझेदारी के लिए ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा के खतरों पर सहयोग कैसे उत्प्रेरक हो सकता है। इसमें दो अलग-अलग लेकिन परस्पर संबंधित खंडों पर नज़र डाली गई है। सबसे पहले, इसमें दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ-साथ प्रशांत द्वीपीय देशों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों की पहचान की जाती है। दूसरा, इसमें विश्लेषण किया जाता है कि कैसे चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता, या क्वाड, दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) क्षेत्रीय फ़ोरम, ब्लू डॉट नेटवर्क और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) जैसे सहयोग के मंच, एनटीएस के मुद्दों को कम प्रभावी बना सकते हैं और राज्यों के लिए क्षेत्र के खिलाड़ियों के बीच बेहतर सुरक्षा नियंत्रण और सहयोग के अवसर प्रदान कर सकते हैं।

ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा की समस्याएँ: सिंहावलोकन

दक्षिण एशिया 

दक्षिण एशिया ने बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का अनुभव किया है। उदाहरण के लिए, 2004 में भूकंप और सुनामी ने हिंद महासागर के समुद्रतटवर्ती क्षेत्रों को तबाह कर दिया। 2007 में, सिदर चक्रवात ने श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश पर आघात किया, और इसके परिणामस्वरूप, आपदा पैदा कर दी। 2020 में, अम्फ़ान चक्रवात ने बांग्लादेश, भूटान, भारत और म्यांमार में लगभग 50 लाख लोगों को विस्थापित कर दिया। यह किसी प्राकृतिक आपदा के कारण होने वाले दुनिया के सबसे बड़े विस्थापनों में से एक था। ये आपदाएँ आर्थिक नुकसान और बड़े पैमाने पर हताहतों का कारण बनती हैं। अक्सर, अपर्याप्त समय-पूर्व चेतावनी प्रणालियों और अप्रभावी प्रतिक्रियाओं के कारण प्रभाव और गंभीर हो जाते हैं। 

हाल के वर्षों में, इस क्षेत्र के देशों को जलवायु परिवर्तन से संबंधित बढ़ते एनटीएस ख़तरों का सामना करना पड़ा है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर-सरकारी पैनल ने भविष्यवाणी की है कि समुद्र के बढ़ते स्तर से इस क्षेत्र के निचले इलाकों में विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। इस बीच, हिमालय में देखा गया हिमनद अपगमन नदी प्रणालियों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। 

फिलीपीन सेना के सिपाही सुपर टाइफ़ून ऑडेट, जिसे टाइफ़ून राय भी कहा जाता है, के पीड़ितों के लिए भोजन प्रदान करते हैं, जो 2021 में फिलीपींस से टकराने वाला सबसे ताक़तवर और सबसे विनाशकारी तूफ़ान था। रॉयटर्स

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन से प्रेरित पलायन बढ़ रहा है। 2018 की एक रिपोर्ट में, विश्व बैंक ने पूर्वानुमान लगाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक 14 करोड़ से अधिक लोग अपने मूल देशों से पलायन करेंगे। जलवायु परिवर्तन से प्रेरित पलायन न केवल तनाव और असमानताओं को बढ़ाता है, बल्कि शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक सेवाओं तक की पहुँच पर भी प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश इस घटना के लिए एक हॉट-स्पॉट बन गया है। म्यांमार से विस्थापित जातीय रोहिंग्याओं की आमद से बांग्लादेश के लिए चुनौतियाँ और भी बढ़ गई हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थियों के उच्चायुक्त के अनुसार, पड़ोसी देशों में म्यांमार के 10 लाख विस्थापित रोहिंग्या और शरणार्थियों में से, 860,000 बांग्लादेश में हैं।

इस संबंध में, प्रवासन उपायों की विस्तृत शृंखला पर विचार किया जा सकता है, जिसमें राष्ट्रीय विकास पहलों में प्रवासन को मुख्यधारा में शामिल करना; प्रवासन और मानवीय सहायता की रूपरेखा में तालमेल बैठाना; और स्थानीय हितधारकों के लिए व्यापक मानवीय प्रतिक्रिया प्रशिक्षण कार्यक्रम विकसित करना शामिल है। अन्य रणनीतियों में सार्वजनिक-निजी साझेदारी को बढ़ाना; नागरिक समाज समूहों की भागीदारी सुनिश्चित करना; और प्रवासियों और प्रवासी समुदायों को सशक्त बनाना शामिल हो सकता है। 

दक्षिणपूर्व एशिया 

दक्षिणपूर्व एशिया अवैध ड्रग कार्टेल के लिए हॉट-स्पॉट बना हुआ है जो पूरे गोल्डन ट्राएंगल में काम करता है, जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ड्रग उत्पादक क्षेत्र और अफीम का प्रमुख उत्पादक माना जाता है। 

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि म्यांमार में अफीम की खेती 2006 के बाद से तीन गुना हो गई है और अब 60,703 हेक्टेयर को कवर करती है। तख्तापलट के पहले म्यांमार में कुछ आर्थिक विकास के बावजूद परिधीय क्षेत्र, विकास परियोजनाओं से अछूते रहे हैं और इसलिए, अफीम की खेती जैसी गतिविधियाँ पनपती रही हैं। जबकि संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार के साथ-साथ लाओस में फसल प्रतिस्थापन शुरू करके हस्तक्षेप करने का प्रयास किया है, नशीली दवाओं की तस्करी तेजी से बढ़ी है, जिससे अन्य देशों के लिए भी चुनौतियाँ पैदा हुई हैं। 

उदाहरण के लिए, वियतनाम, जहाँ दुनिया के कुछ सबसे कठोर नशीली दवाओं से संबंधित क़ानून हैं, हेरोइन और मेथैम्फेटामाइन के लिए पारगमन केंद्र है। आसियान देशों के साथ जापान, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना और दक्षिण कोरिया जैसे देश, हेरोइन के उपयोग से हटकर एम्फ़ेटेमाइन-प्रकार के उत्तेजक पदार्थों की ओर बदलाव देख रहे हैं, जो गोल्डन ट्राएंगल से तस्करी और ग़ैर-क़ानूनी ढंग से वहाँ पहुँचते हैं।

दक्षिण एशिया की तरह, दक्षिण पूर्व एशिया के देश — विशेषकर इंडोनेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम — जलवायु परिवर्तन से संबंधित ख़तरों का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगले 10 वर्षों में दक्षिण पूर्व एशिया के लिए बाढ़ और सूखे का खतरा बढ़ जाएगा, जिससे फिलीपींस के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 3%, लाओस के लिए 2% और कंबोडिया के लिए 1.5% से अधिक का आर्थिक नुकसान होगा।

अन्य ख़तरे समान रूप से कठोर हैं: इंडोनेशिया में ताड़ के तेल के अत्यधिक शोषण के कारण वन आच्छादन 1990 में 65.4% से घटकर 2013 में 50.2% हो गया है; कुछ दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों से (पीआरसी सहित) प्लास्टिक अपशिष्ट दुनिया के महासागरों में पूरे प्लास्टिक कचरे के आधे तक पहुँच गए हैं; और प्रशांत महासागर की रिंग ऑफ फायर में उपस्थित होने के कारण इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों को बार-बार भूकंप और संबंधित आपदाओं से खतरा है। 

प्रशांत द्वीपीय देश 

हालांकि प्रशांत द्वीपीय देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है, इन द्वीपों के लिए ग्लोबल वार्मिंग के खतरे, विशेष रूप से समुद्र-स्तर की वृद्धि को कम करके आँका नहीं जा सकता है। ये राज्य अंतरराष्ट्रीय अपराध, प्राकृतिक आपदाएँ और संसाधनों का अवैध और निरंतर दोहन भी अनुभव करते हैं। उनके पास अक्सर खतरों का मुकाबला करने के लिए सीमित संसाधन होते हैं और इसलिए, बहुपक्षीय साझेदारी की मदद आवश्यक होगी।

ग़ैर-पारंपरिक ख़तरों पर सहयोग करना

पारंपरिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अभिकल्पित साझेदारी की कोई कमी नहीं है। हालांकि, एनटीएस ख़तरों को कम करने और नए सहयोग ढाँचे तैयार करने के लिए मौजूदा तंत्र के दायरे का विस्तार करना आवश्यक है।

इन वर्षों में, आसियान के क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे का एनटीएस चुनौतियों द्वारा लगातार परीक्षण किया गया है। इनमें 1997 का एशियाई आर्थिक संकट, 2002-03 में गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम प्रकोप, 2007 की बर्ड फ़्लू महामारी और हाल की COVID-19 महामारी शामिल है जो 2020 में वैश्विक स्तर पर फैल गई थी। 

इंडोनेशियाई अधिकारी इंडोनेशिया के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र में अवैध मछली पकड़ने के संदेह में वियतनामी पोत की चौकसी करते हुए। रॉयटर्स

आसियान ने इस तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए कई तंत्र स्थापित किए हैं। उदाहरण के लिए, आपदा प्रबंधन और आपातकालीन प्रतिक्रिया पर आसियान समझौता सदस्य देशों के लिए नीतिगत आधार है जिससे वे आपदा जोखिम को कम करने और आपदाओं पर प्रतिक्रिया करने के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ा सकें। आसियान क्षेत्रीय मंच वह जगह है जहाँ सदस्य सुरक्षा से जुड़े मामलों पर चर्चा करते हैं और नीति निर्माण के माध्यम से क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बढ़ाने के लिए सहयोगी उपाय विकसित करते हैं। अपनी भूमिका निभाते हुए, आसियान राजनीतिक-सुरक्षा समुदाय ने राज्यों के लिए सुरक्षा सहयोग करने और राजनीतिक संरेखण को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया है। 

व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की तस्करी के खिलाफ़ आसियान द्वारा कार्रवाई की योजना आसियान सदस्य देशों के घरेलू क़ानूनों और नीतियों के साथ-साथ प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय दायित्वों की सीमाओं के भीतर ख़ास कदम उठाने की रूपरेखा तैयार करती है। इसका उद्देश्य सभी सदस्य देशों के लिए सामान्य क्षेत्रीय चुनौतियों का समाधान करना है। 

2020 की शुरुआत में, आसियान सदस्य देशों ने आवाजाही प्रतिबंध आदेश जारी करके और सूचना-साझाकरण शुरू करके COVID-19 महामारी का जवाब दिया। 

आसियान अन्य देशों के साथ भी विभिन्न मंचों पर काम करता है, उदाहरण के लिए, जापान, पीआरसी और दक्षिण कोरिया के साथ आसियान प्लस थ्री पहल। यह ब्लॉक आसियान क्षेत्रीय मंच आपदा राहत अभ्यास में भारत के साथ भी काम करता है। वास्तव में, भारत आपदा प्रबंधन पर मानवीय सहायता के लिए आसियान समन्वय केंद्र के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने की इच्छा रखता है। COVID-19 महामारी के दौरान भारत ने जेनेरिक दवाओं और चिकित्सा प्रौद्योगिकियों के उत्पादन में भी आसियान के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई है। 

ब्लू डॉट नेटवर्क 

ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देने के लिए 2019 में ब्लू डॉट नेटवर्क लॉन्च किया। भारत जैसे देशों के सहयोग से, नेटवर्क प्रमाणन सहित संवहनीय परियोजनाओं पर जोर देता है। एक प्रमुख नेटवर्क समझौता आसियान देशों में “स्मार्ट सिटीज़” परियोजना से संबंधित है। कुछ ने खाद्य सुरक्षा, आपदाओं और स्वास्थ्य पर संभावित प्रभावों की पहचान करके देशों को संवहनीय अवसंरचना तैयार करने में मदद करने के लिए ब्लू डॉट मार्केटप्लेस का
भी प्रस्ताव दिया है। 

हिंद महासागर रिम एसोसिएशन 

आईओआरए का उद्देश्य अपने 23 सदस्य देशों और 10 वार्ता भागीदारों के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग और सतत विकास को मजबूत करना है। समूह अपने सदस्यों द्वारा समुद्री डकैती, समुद्र में सशस्त्र डकैती, आतंकवाद, मानव तस्करी, अप्रलेखित पलायन और वन्यजीवन, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी सहित कई पारंपरिक और ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा जैसी सामना की जा रही चुनौतियों पर बात करता है। अवैध, अप्रतिबंधित और अनियमित (आईयूयू) मछली पकड़ने, समुद्र के स्वास्थ्य में गिरावट और समुद्री संसाधनों के ग़ैर क़ानूनी शोषण जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जिनमें से सभी जलवायु परिवर्तन के कारण और भी जटिल हो जाती हैं। 

जनवरी 2021 में, आपदा जोखिम प्रबंधन पर पहली आईओआरए विशेषज्ञ समूह की बैठक ने आपदा जोखिम प्रबंधन पर आईओआरए कार्यकारी समूह की स्थापना के लिए एक रोडमैप सेट किया।

सदस्य देशों ने हिंद महासागर में मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) संचालन के लिए दिशानिर्देशों को भी अंतिम रूप दिया। आईओआरए को समुद्री सुरक्षा और संरक्षण पर स्थायी कार्यकारी समूह के लिए आईओआरए कार्य योजना प्रस्ताव बनाकर ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए सहयोग को मजबूत करना चाहिए।

बिम्सटेक 

बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) ने— जिसमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं — आतंकवाद के खिलाफ़ लड़ाई और संगठित अंतरराष्ट्रीय अपराध को संवहनीय विकास और क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए एक पूर्वापेक्षा के रूप में माना है। 2009 में अपनाया गया अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध और अवैध नशीली दवाओं की तस्करी का मुकाबला करने में सहयोग पर बिम्सटेक समझौता, सदस्य देशों के लिए अपने घरेलू क़ानूनों और विनियमों के अधीन, एक साथ उन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए आत्मविश्वास पैदा करने वाला उपाय है। 

हालांकि 15-अनुच्छेद वाले समझौते में मानव तस्करी या अप्रलेखित प्रवासन का उल्लेख नहीं है, बिम्सटेक सदस्यों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सालाना बैठक कर रहे हैं और सभी देश सहयोग के लिए तंत्र को स्वीकार करने की प्रक्रिया में हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार क़ानून प्रवर्तन, खुफ़िया तंत्र और सुरक्षा में सहयोग और समन्वय के लिए उपाय विकसित करेंगे। यह सुरक्षा तंत्र के क्षमता-निर्माण को बढ़ावा दे सकता है और वास्तविक समय में जानकारी साझा करने में सक्षम हो सकता है। आपदा प्रबंधन में, बिम्सटेक ज्ञान और तकनीकी विशेषज्ञता को साझा करके, मानक संचालन प्रक्रियाओं को तैयार करके और आपदा प्रतिक्रिया सैन्य दल का निर्माण और वित्त पोषण करके क्षमता-निर्माण में सहयोग को सुगम कर सकता है। 

लघुपक्षीय मंच 

क्वाड 

चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, या क्वाड, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी है जो इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र के भीतर समृद्धि सुनिश्चित करने में सदस्यों के साझा हित पर आधारित है। क्वाड एजेंडा में महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और सामग्रियों, विश्वसनीय आपूर्ति शृंखलाओं, अवसंरचना, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, साइबर मुद्दे, COVID-19 प्रतिक्रिया, वैक्सीन उत्पादन और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग शामिल है, और इसमें मुद्दों पर आधारित सहयोग के लिए आसियान देश शामिल हो सकते हैं।

क्वाड इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र के भीतर आपदा प्रबंधन और क्षमता निर्माण के लिए मजबूत संरचना भी विकसित कर रहा है। 

ऑस्ट्रेलिया-भारत-जापान त्रिपक्षीय 

इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र का भू-रणनीतिक महत्व ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान के लिए सहयोग बनाने और नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए बिल्कुल सही बिंदु हो सकता है। 

तीनों देश एक-दूसरे और अपने पड़ोसियों को एचएडीआर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके अलावा, भारत और जापान ने संयुक्त रूप से एचएडीआर संचालन पर ध्यान केंद्रित किया है। COVID-19 महामारी ने तीनों देशों को चिकित्सा आपूर्ति और एचएडीआर संचालन साझा करके वैज्ञानिक विकास और अनुसंधान क्षमता पर काम करने में मदद की है। 

एक और चुनौती आईयूयू मछली पकड़ने की है, जो उपभोक्ता माँग के कारण और तेज हो गई है और संसाधन की कमी को और बुरी स्थिति में ले जाने का भय दिखाती है। समुद्री डकैती, ग़ैर-क़ानूनी व्यापार व तस्करी, और जबरन श्रम जैसे समुद्री अपराधों के भी खतरे हैं। बड़े मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए आश्रय-स्थल के रूप में, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान को आईओआरए के साथ-साथ हिंद महासागर टूना आयोग जैसे अन्य लक्षित मंचों के माध्यम से मिलकर अपनी पहुँच का विस्तार करना चाहिए।

नई क्षेत्रीय व्यवस्था

त्रिपक्षीय, लघुपक्षीय और बहुपक्षीय समूहों के उद्भव के साथ-साथ समान विचारधारा वाले देशों के बीच बढ़ती द्विपक्षीय सहक्रिया, नई क्षेत्रीय व्यवस्था को आकार देने वाले प्रमुख विकास हैं। साथ ही, राष्ट्रीय हितों और उद्देश्यों के अनुसार अभिकल्पित रणनीतिक विकल्प इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र को चिह्नित करना जारी रखेंगे। 

देशों को क्षेत्रीय रणनीतियों और कार्य योजनाओं का अनुसरण करना चाहिए जो विभिन्न ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों का समाधान करते हैं। राज्य और राज्येतर कार्य करने वाले मौजूदा क्षेत्रीय ढाँचे और पहल के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं और अधिक लक्षित कार्य योजनाएँ बना सकते हैं। 

कार्य-आधारित सहयोग जो मूर्त और मापने योग्य लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, आर्थिक या सुरक्षा अनिवार्यताओं के आधार पर साझेदारी के पारंपरिक प्रारूप के अलावा, सहयोग का पसंदीदा तरीक़ा बन रहा है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में उभरे लघु मंच कार्य-आधारित सहयोग संरचना की ओर उन्मुख हो रहे हैं। ग़ैर-पारंपरिक सुरक्षा के क्षेत्रों में प्रगति के लिए, यह फायदेमंद हो सकता है।  

नई दिल्ली, भारत में स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने मूल रूप से मार्च 2022 में इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया था। इसे फ़ोरम के प्रारूप में फ़िट बैठाने के लिए संपादित किया गया है। पूरी मूल रिपोर्ट को एक्सेस करने के लिए

https://www.orfonline.org/research/strengthening-partnerships-to-counter-non-traditional-security-threats-in-the-indo-pacific/ पर जाएँ। 


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